भारत की बहुत बड़ी वैज्ञानिक जीत, ‘NASA’ ने किया आज तक का सबसे बड़ा खुलासा – पूरे विश्व ने मानी हार !
हम भारतीयों की सबसे बड़ी कमी रही है कि हमें भारत के गौरवशाली इतिहास के बारे में पता ही नहीं है। हमें अपने धरोहर को संजोये रखना आता ही नहीं है। पश्चिमी देशों के गोरे चमड़ी वाले लोगों से हम इतने ज्यादा प्रभावित हैं की हमें अपने ही देश के भूरे चमड़ी वालों द्वारा हज़ारों साल पहले की गयी अनुसंधान और उपलब्दियां मात्र कपॊल कल्पित कहानियां लगती है। भारत विरॊधी तत्वों द्वारा फैलाया गये झूठ को सीने से लगा करअपने ही पूर्वजों द्वारा लिखे गये वेद-विज्ञान का उपहास करने में हमें तनिक मात्र भी लज्जा नहीं आती।

अगर हम कहें की भारत हज़ारों वर्ष पूर्व ही विज्ञान में विश्व में सबसे आगे था, तो देश के तथा कथित बुद्दीजीवी हम पर तंज कसते हैं और हँसते हैं। कहते है की आदिम काल में पत्तियां खानेवाला भारत के ऋषी- मुनी विज्ञान के बारे में क्या लिखेगा? विज्ञान तो अमरीका, रुस, जर्मनी और जपान जैसे देशों की देन है। जब की वास्तव में इन देशों के आंखे खॊलने से पहले ही हमारे ऋषी- मुनी चांद-सितारों पर पहुंच चुके थे।
आज टकटकाई लगाए जो दुनिया में होनेवाले अनुसंधान हम देखते हैं उन्हें वर्षों पूर्व ही हमारे ऋषि-मुनियों ने खोज दिया था, जिस को अब स्वयं नासा भी मानता है। दुनिया की एक अभूत पूर्व खॊज है कंप्यूटर। हमें लगता है की कंप्यूटर प्रॊग्रामिंग की खोज पाश्चिमी देशों ने किया। गलत है, सदियों पूर्व ही भारत के महर्षी पाणिनी ने कंप्यूटर प्रॊग्रामिंग की खॊज की थी। पाणिनि (500 ईसा पूर्व) संस्कृत व्याकरण शास्त्र के सबसे बड़े प्रतिष्ठाता और नियामक आचार्य थे। इनका जन्म पंजाब के शालातुला में हुआ था जो आधुनिक पेशावर (पाकिस्तान) के क़रीब तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनका जीवनकाल 520-460 ईसा पूर्व माना जाता है। इनके व्याकरण को अष्टाध्यायी कहते हैं। इन्होंने भाषा के शुद्ध प्रयोगों की सीमा का निर्धारण किया था। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है।

आज NASA भी मानता है की कंप्यूटर प्रॊग्रामिंग के लिए सबसे सरल और सटीक भाषा संस्कृत ही है। NASA के वैज्ञानिक Mr.Rick Briggs ने अमेरिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (artificial intelligence) और पाणिनी व्याकरण के बीच की शृंखला खोज की है। विश्व में केवल संस्कृत ही एक मात्र प्राकृतिक भाषा है अन्य सारे मानव निर्मित है। The MLBD News letter ( A monthly of indological bibliography) in April 1993, में महर्षि पाणिनि को first software man without hardware घोषित किया है। जिसका मुख्य शीर्षक था ” Sanskrit software for future hardware”।
इसमें बताया गया है कि प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाने के तीन दशक की कोशिश करने के बाद, वैज्ञानिकों को एहसास हुआ कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी वे 2600 साल पहले ही भारत से पराजित हो चुके हैं। हालाँकि उस समय में किस प्रकार और कहाँ इसका उपयोग करते थे यह तो नहीं कह सकते, पर आज भी दुनिया भर में कंप्यूटर वैज्ञानिक मानते है कि आधुनिक समय में संस्कृत व्याकरण सभी
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