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अद्धभुत कथा विशेषांक :चिरंजीवी श्री हनुमान की विष्णुलोक यात्रा और क्षीर सागर का रहस्य



अद्धभुत कथा विशेषांक :

चिरंजीवी श्री हनुमान की विष्णुलोक यात्रा और क्षीर सागर का रहस्य


दौरे पड़ने के बाद हुई थकान के कारण उर्मी वृक्ष के नीचे लेटी हुई थी | दोनों अश्विन (स्वास्थ्य के जुड़वाँ देवता) और हनुमान जी वही पास में खड़े थे लेकिन उर्मी के लिए वे अदृश्य थे |जब हनुमान जी ने अश्विनों को उर्मी के पिछले जन्म की घटनाएं दिखाई तब जाकर उन्हें समझ में आया कि क्यों वे उर्मी के दौरों का उपचार नहीं कर पा रहे थे | उन्होंने देखा कि उर्मी पिछले जन्म में एक किसान की पत्नी थी और उसने अपने पुत्र को समय के कुछ धागों का दान दिया था | फलस्वरूप उसकी आत्मा का उसके पिछले जन्म के पुत्र की आत्मा से गहरा जुड़ाव हो गया था | किसान की पत्नी के रूप में उसकी मृत्यु हो जाने के पश्चात् भी उसकी आत्मा तब तक भटकती रही जब तक कि उसके पुत्र की भी वृद्ध होकर मृत्यु नहीं हो गई | उसके पश्चात् उन दोनों ने लगभग एक ही साथ नया जन्म लिया | उसने उर्मी के रूप में श्री लंका में जन्म लिया तो उसके पिछले जन्म के पुत्र ने भारत के एक शहर दिल्ली में जन्म लिया | अर्थात इस जन्म में वह अपने पिछले जन्म के पुत्र से जुदा हो गई थी | इसी जुदाई के कारणवश उसकी आत्मा ने उसके इस नए शरीर को पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया था | इसीलिए उसको दौरे पड़ते थे |

हनुमान जी ने बताया – “उर्मी की आत्मा को अपने पिछले जन्म के पुत्र के साथ रहने की गहरी इच्छा है | उसके दौरे तभी ठीक होंगे जब उसकी आत्मा की यह इच्छा पूरी होगी |”

“लेकिन उसकी यह मंजिल नहीं है , शक्तिमान हनुमान जी !” अश्विन बोले – “उर्मी की मंजिल मोक्ष है | इसीलिए तो उसने मातांगो के बीच जन्म लिया है | दूसरी तरफ उस लड़के ने सैकड़ों मील दूर एक नगर में जन्म लिया है | इन दोनों की संस्कृति अलग है , माहौल अलग है | इनके बीच कुछ भी समानता नहीं है | तो फिर ये दोनों इस जन्म में साथ साथ कैसे रह सकते हैं ?”

“यह चुनाव तो उर्मी की आत्मा को ही करना होगा कि वह मोक्ष चाहती है अथवा अपने पिछले जन्म के पुत्र के साथ रहना चाहती है | मै जानता हूँ कि वह मोक्ष का ही चुनाव करेगी | लेकिन यह चुनाव करने के लिए उसे उस बालक से कम से कम एक बार अवश्य मिलना होगा | तभी वह उस बालक के साथ अपने संबंधों को तोड़ पाएगी |” हनुमान जी बोले –“और हाँ , इन दोनों के बीच इस जन्म में भी एक समानता अवश्य है | वो समानता ये है कि ये दोनों इस जन्म में भी मेरे भक्त हैं |”

“हे सर्वशक्तिमान हनुमान, वह लड़का हिमालय के पास एक नगर में रहता है | उर्मी उससे मिलने कैसे जायेगी ? उर्मी एक नश्वर मानव है | उसकी अपनी मर्यादाएं हैं | उसकी देह नश्वर संसार के नियमों से बाध्य है | वह उस स्थान पर आपकी तरह पलक झपकते ही नहीं जा सकती | न ही वह आपकी तरह उड़कर वहां जा सकती है |” अश्विनों ने अपनी शंका व्यक्त की |

“हे अश्विनों , इन दोनों की देहों का मिलना आवश्यक नहीं है | केवल इनकी आत्माओं का मिलना आवश्यक है | और इन दोनों की आत्माओं को मिलाने का एक मार्ग है | मुझे विष्णुलोक जाना होगा |” श्री हनुमान जी बोले |

अश्विन अभी भी भ्रमित थे | वे बोले – “हे बुद्धिमान हनुमान , कृपा हम अज्ञानीयों को क्षमा करे किन्तु आप कह रहे हैं कि उर्मी की देह यही रहेगी लेकिन उसकी आत्मा उस बालक से मिलने जा सकती है ? अगर इसकी आत्मा इसके शरीर को छोड़ेगी तो क्या इसकी मृत्यु नहीं हो जायेगी ? आत्मा शरीर को छोड़कर कुछ समय बाद शरीर में वापिस कैसे लौट सकती है ?

हनुमान जी मुस्कुराये और बोले – “हे अश्विनो , ऐसा प्रतीत होता है कि आप आजकल देवताओं की सेवा में इतने व्यस्त हैं कि मानवलोक के स्वभाव के बारे में भूल गए हैं | आत्मा मानव देह को छोड़कर कुछ समय तक बाहर जाकर वापिस देह में आ सकती है | और इस प्रक्रिया में मनुष्य की मृत्यु नहीं होती |”

अश्विन बोले –“हे शक्तिमान हनुमान , हमें मानव देह का पूर्ण ज्ञान है | हम एक मृत देह में भी प्राणों का संचार कर सकते हैं किन्तु हमें आत्मा के विषय में उतना ज्ञान नहीं है | कृपा हमें भी आप विष्णुलोक में अपने साथ ले चलिए ताकि हम भी यह देख सके कि आप इन दोनों की आत्माओं का मिलन कैसे संभव करते हैं |”

हनुमान जी अश्विनों को अपने साथ ले जाने के लिए राजी हो गए |

अश्विन भगवान् हनुमान के विशालकाय कन्धों पर सवार हो गए | हनुमान जी ने अपने नेत्र बंद किये और श्री विष्णु के चरण कमलों का ध्यान किया | अश्विनों के नेत्र खुले थे | उन्हें यह तो मालुम नहीं चला कि हनुमान जी का आकार बढ़ा या छोटा हुआ लेकिन उन्हें केवल इतना दिखाई दिया कि वे गृहों , सूर्यमंडलों और आकाश गंगाओं के पास से गुजरे | जब हनुमान जी अपने सामान्य आकार में वापिस आये तब उन्होंने अपने आपको एक विचित्र समुद्र के ऊपर पाया जिसमे श्वेत रंग का एक विचित्र द्रव था | वे विष्णु लोक में बिना कोई समय खर्च हुए पहुँच गए |

सामान्यतः जब देवगण विष्णुलोक में जाते हैं तब वे उस स्थान पर प्रकट होते हैं जहाँ विष्णु जी शेषनाग की शैया पर विश्राम कर रहे होते हैं | लेकिन हनुमान जी अश्विनों को जानबूझकर उस स्थान से बहुत दूर ले गए | वे उन्हें कुछ दिखाना चाहते थे |
“हे अश्विनो , आपको यहाँ क्या दिखाई दे रहा है ?” हनुमान जी ने पूछा |

अश्विन उस महान समुद्र की सुन्दरता से हैरान थे | अश्विन बोले –“यह दूध का समुद्र है हनुमान जी | हमने इसके बारे में सुना है | जहाँ तक हमारी दृष्टि जा रही है यहाँ केवल दुग्ध ही दुग्ध है |”
हनुमान जी ने बताया – “हम समस्त ब्रह्माण्ड के बाहर आ गए हैं | हम सभी लोक पार करके यहाँ पहुंचे हैं | हम इस समय ब्रह्माण्ड के बिलकुल बाहर खड़े हैं | यह समुद्र इस समस्त ब्रह्माण्ड की बाहरी परत पर है | इस समुद्र का नाम है “मुक्तिसागर”- यह मुक्ति अर्थात मोक्ष का सागर है | सभी मोक्ष प्राप्त आत्माएं यहाँ इसी समुद्र में रहती हैं |”

अश्विन बोले –“हे शक्तिमान हनुमान , हमने इस स्थान के बारे में सुना है जहाँ आत्माएं मोक्ष प्राप्ति करके रहने आती हैं | लेकिन हमने इतने अद्भुत श्वेत समुद्र की कल्पना भी नहीं की थी | किन्तु वो आत्माए इस समय हमें इस समुद्र में दिखाई क्यों नहीं दे रही हैं ?”

“जब सूर्य की किरणे पानी की छोटी छोटी बूंदों पर पड़ती हैं तो क्या होता है ? वे बुँदे अपने ठोस स्वरुप को त्याग देती हैं और हवा में वाष्प बनकर उड़ जाती हैं |” हनुमान जी ने उत्तर दिया – “कुछ ऐसा की आत्माओं के साथ होता है | जब आत्माओं की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं तब उन्हें किसी स्वरुप या देह की आवश्यकता नहीं होती | इस मुक्तिसागर में उन आत्माओं की सभी इच्छाएं पूर्ण रहती हैं क्योंकि इस सागर में सब कुछ है | अमृत , जहर , गर्मी , सर्दी , जल , दुग्ध , सुन्दरता , अभद्रता आदि सब है इसमें | एक आत्मा की इच्छा की पूर्ती के लिए जो भी आवश्यकता हो सकती है वह इस सागर में मौजूद है | इसी कारण ये आत्माएं इस सागर में स्वरुप-हीन और देह-हीन हैं | जैसे ही कोई आत्मा इस समुद्र से बाहर निकलती है , उसमे फिर से अपूर्ण इच्छाएं आ जाती है | तब वह आत्मा अपनी उन इच्छाओं की पूर्ति हेतु नश्वर संसार में जाकर कोई देह धारण करती है |

अश्विनों ने पुछा – “हे बुद्धिमान हनुमान , हमारी अज्ञानता के लिए हमें क्षमा करें किन्तु मोक्ष प्राप्त आत्माए इस समुद्र में से बाहर क्यों आती हैं ? और फिर वे नश्वर संसार में क्यों जाना चाहती हैं अगर उनकी सभी इच्छाएं इस समुद्र में पूर्ण रहती हैं ?”

हनुमान जी मुस्कुराये | उन्होंने अपनी आँखे बंद की और एक प्रार्थना कही – “हे भगवान् ब्रह्मा, मैं हनुमान हूँ | श्री विष्णु का एक छोटा सा सेवक | हे भगवान् ब्रह्मा , कृपा आओ और मेरे हाथ बन जाओ |”
फिर हनुमान जी ने अपनी आँखें खोली और सागर की सतह को अपनी गदा से हलके से छुआ ताकि उस शांत समुद्र में छोटी सी तरंग पैदा हो | जैसे ही उन्होंने अपनी गदा को समुद्र की सतह से छुआ , उस श्वेत शांत द्रव में से एक श्वेत पक्षी की सी आकृति निकली | वह आकृति एक विशेष दिशा की तरफ गतिमान हुई और फिर अदृश्य हो गई |
अश्विन यह देखकर अचंभित थे | उन दोनों ने भी अपनी आँखे बंद की और बोले – “हे भगवान् ब्रह्मा , हम अश्विन हैं | स्वास्थ्य के देव | कृपा आओ और हमारे हाथ बन जाओ |”

तब एक अश्विन ने आँखे खोली, थोड़े से झुके और समुद्र के श्वेत द्रव को अपने हाथ की चार उँगलियों से छुआ | छुते ही एक हिरन की सी श्वेत आकृति सागर से उभरी और एक विशेष दिशा में कुछ समय गतिमान होकर अदृश्य हो गई |

अश्विनों ने हनुमान जी की और देखा | वे मुस्कुरा रहे थे | हनुमान जी ने बताया – “जो हमारे नीचे समुद्र है यह विष्णुलोक है लेकिन क्या आपको ज्ञात है कि हम इस समय कहाँ पर झूल रहे हैं ? हम भगवान ब्रह्मा की गोद में हैं | यह समुद्र इस पूरे ब्रह्माण्ड की सबसे बाहरी परत पर है लेकिन इस समुद्र के ऊपर जो आकाश है वह ब्रह्मलोक है | ब्रह्मा जी के कारण ही इस समुद्र से लहरें उठती हैं | ये सृजन की लहरें हैं | जिस प्रकार चन्द्रमा के कारण मानवलोक के जल समुद्र में लहरें उठती हैं उसी प्रकार ब्रह्मा जी के कारण इस मुक्तिसागर में लहरे उठती हैं | जब इस मुक्तिसागर में विश्राम कर रही एक मोक्ष प्राप्त आत्मा इस सागर की सतह तक पहुँच जाती है तब ब्रह्मा जी का बल ही उसे एक लहर के रूप में इस समुद्र से अलग होने में सहायता करता है | मै यहाँ पर अशक्त हूँ | इसीलिए मैंने प्रार्थना करके पहले ब्रह्मा जी से शक्तियां मांगी तब मैंने अपनी गदा से इस सतह को हलके से छुआ | जो आत्मा इस समय इस सतह पर थी वह इस सागर से अलग हो गई और एक पक्षी की आकृति में गतिमान हो गई |
“लेकिन ये आत्माए गतिमान होकर कहाँ जा रही हैं , प्रभु ? जब मैंने इस समुद्र की सतह को छुआ , एक आत्मा मृग की आकृति में गतिमान हुई |” अश्विनों में से एक ने पूछा |

दुसरे अश्विन बोले –“मैंने देखा कि पक्षी और मृग दोनों आकृतियाँ एक ही दिशा में गतिमान हुई |”

पहले अश्विन ने कहा –“एक ही दिशा में गतिमान हुई ? यह कैसा अवलोकन है ? हो सकता है वह केवल एक संयोग हो कि वे दोनों एक ही दिशा में गई | हम देवो के चिकित्सक हैं , अश्विन | आप ऐसे केवल दो क्रियाओं को देखकर कोई निष्कर्ष कैसे निकाल सकते हैं ? यह सही नहीं है |”

हनुमान जी हँसे और बोले – “अपनी विश्लेषण की योग्यता नश्वर संसार में प्रदर्शित करना , अश्विनो | अपनी योग्यताओं के बारे में यहाँ पर तर्क मत करो | मै यहाँ किसी महत्वपूर्ण कार्य से आया हूँ | उर्मी मानव लोक में वृक्ष के नीचे लेटी हुई है | मैं इसलिए आया हूँ क्योंकि मुझे उसके दौरों के रोग को ठीक करना है | अगर आप तथ्य जानना चाहते हैं तो वह यह है कि यह समुद्र समतल नहीं है | यह पृथ्वी की तरह एक गोले के आकार में है | जहाँ भी इसमें कोई लहर उठती है वह उस दिशा में गतिमान होती है जहाँ भगवान् विष्णु अपनी नाग्शैया पर विराजमान हैं |”

अश्विन हाथ जोड़कर बोले –“हे सर्वशक्तिमान हनुमान , विष्णुलोक कल्पनाओं से भी उत्तम है | हमें डर है कि अगर हम अधिक समय तक यहाँ रुके तो हमने सदियों से जो चिकित्सा विद्या अर्जित की है उसे भी भूल जायेंगे | अतः हम नश्वर संसारों में लौटना चाहते हैं | कृपा मार्गदर्शन करें कि हम यहाँ से कैसे नश्वर संसार में वापिस लौटें |”

हनुमान जी द्वारा डांट खाने के बाद अश्विन वहां पर असहज महसूस कर रहे थे | हनुमान जी समझ गए | उन्हें सहज महसूस कराने के लिए मित्रता के स्वर में बोले – “हे भोले अश्विनों, विष्णुलोक के बारे में जानने के पश्चात् एक लकडहारा और भी अच्छा लकडहारा बन जाता है , एक किसान और भी अच्छा किसान बन जाता है , एक कारीगर और भी अच्छा कारीगर बन जाता है | इसलिए चिंता मत करो | विष्णुलोक का ज्ञान होने के बाद आप एक बेहतर चिकित्सक बनोगे | आप न केवल देह अपितु आत्मा के सन्दर्भ से भी चिकित्सा करना भी सीख जाओगे|”

अश्विन नश्वर संसार में वापिस नहीं जाना चाहते थे | वे विष्णुलोक में ही रहना चाहते थे | उन्होंने सोचा कि हनुमान जी उनके प्रश्नों से परेशान हो गए हैं | इसीलिए वे वापिस लौटने का प्रस्ताव रख रहे थे | किन्तु जब उन्हें आभास हुआ कि हनुमान जी भी उन्हें विष्णुलोक में ही अपने साथ रखना चाहते हैं तो वे बहुत प्रसन्न हुए | इससे पहले कि उनकी प्रसन्नता उनके होंठो पर आती , हनुमान जी ने उन्हें चिढाने के लहजे से कहा – “लेकिन अगर आप लोग वापिस जाना ही चाहते हैं तो ....”


“नहीं नहीं शक्तिवान हनुमान |” अश्विन बीच में ही बोल पड़े और चापलूसी के अंदाज में बोले – “नहीं प्रभु , हम वापिस नहीं जाना चाहते हैं | हम तो आपके साथ ही रहना चाहते हैं |”

हनुमान जी ने आँखे चढाते हुए अश्विनों की और देखा और बोले –“अगर आपकी सच में ही जाने की इच्छा होती तो आप कब के चले गए होते | यह विष्णुलोक है | यहाँ पर आत्माओ की इच्छा तुरंत पूर्ण हो जाती है | जब एक आत्मा इस सागर से अलग होकर उठती है और भगवान् विष्णु की दिशा में गतिमान होती है तब वह वास्तव में अपनी इच्छा प्रकट कर रही होती है | भगवान् विष्णु उसकी इच्छानुसार उसे तुरंत नश्वर संसार में भेज देते हैं | जब मैंने अपनी गदा से समुद्र की सतह को छुआ तो एक पक्षी की आकृति में एक आत्मा यहाँ से निकली | उसने भगवान् विष्णु की दिशा में गतिमान होकर यह इच्छा प्रकट की कि वह एक पक्षी के शरीर को धारण करना चाहती है | भगवान् विष्णु ने तुरंत उसकी इच्छा पूर्ण की और उसे नश्वर लोक में पक्षी का जीवन जीने के लिए भेज दिया |उस मृग जैसी आकृति के साथ भी ऐसा ही हुआ | वह एक मृग का जीवन जीने की इच्छा से भगवान् विष्णु की दिशा में गतिमान हुई और उसे मृग का शरीर मिल गया | इसी तरह अगर आप लोगो ने सच में ही नश्वर लोक जाने की इच्छा मन में धारण की होती तो कब के वहां पहुँच गए होते |”

“अच्छा तो यहाँ से एक आत्मा की नश्वर लोक में यात्रा प्रारंभ होती है ! उर्मी की आत्मा भी सदियों पहले यही से नश्वर लोक के लिए रवाना हुई होगी | सदियों पहले उर्मी की आत्मा भी मुक्त अवस्था में इस समुद्र में रही होगी | फिर वो इस समुद्र से निकली और भगवान् विष्णु को मानव लोक में जाने की इच्छा उसने रखी होगी | और भी हज़ारों जन्म लेने के बाद वो आत्मा किसान की पत्नी बनी और उसके बाद वह वर्तमान में उर्मी के रूप में अपना अंतिम जीवन काट रही है | उसके बाद आपकी कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी और वह पुनः यहाँ आ जाएगी , इस मुक्तिसागर में |” अश्विनों को आनंद की अनुभूति हुई कि उन्हें आत्मा का रहस्य पता चल गया था |

किन्तु हनुमान जी उनके इस वर्णन से प्रसन्न नहीं लग रहे थे | वे बोले – “अश्विनो , आपने जो कहा वह सत्य है किन्तु मानवो की तरह निष्कर्ष मत निकालो | पहले सब कुछ अपनी आँखों से देखो | उसके बाद निष्कर्ष पर पहुँचो |”

अश्विन बोले – “हे सर्वशक्तिमान हनुमान , उर्मी की आत्मा इस समुद्र से सदियों पहले रवाना हुई थी | तो हम उस दृश्य को अपनी आँखों से कैसे देख सकते हैं ? हमें तो उस दृश्य की कल्पना ही करनी होगी ना कि कैसे वो आत्मा सदियों पहले इस समुद्र से उठी होगी और फिर उसने अपनी नश्वर लोक की यात्रा प्रारंभ की होगी?”

हनुमान जी ने उत्तर दिया – “हे अश्विनो , विष्णु लोक में “सदियों पहले” का कोई अर्थ नहीं है | भगवान् विष्णु का लोक “काल” यानी “समय के देवता” के आधिपत्य में नहीं है | यहाँ पर समय का कोई अर्थ नहीं है | भूत , वर्तमान और भविष्य का कोई अर्थ नहीं है यहाँ | हाँ , मानवलोक के दृष्टिकोण से आप कह सकते हैं कि उर्मी की आत्मा सदियों पहले यहाँ से गई थी और मानव लोक में इस समय वह अपना अंतिम जीवन जी रही है | किन्तु यहाँ विष्णुलोक में आप अब भी उस दृश्य को देख सकते हैं जब वह आत्मा यहाँ से रवाना हुई थी | हम अब भी उस आत्मा को इस समुद्र से उठता हुआ देख सकते हैं | चलो भगवान् विष्णु के पास चले | वे हमें बताएँगे कि हम उस दृश्य को यहाँ पर कैसे देख सकते हैं |”

हनुमान जी और अश्विन मुक्तिसागर में उस स्थान पर पहुंचे जहाँ भगवान् विष्णु और लक्ष्मी विराजमान थे | हनुमान जी ने घुटनों के बल बैठकर अपने प्रभु और माता लक्ष्मी को प्रणाम किया | भगवान् विष्णु ने खड़े होकर अपने परम भक्त को गले लगा लिया | अश्विनो ने भी झुककर भगवान् विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रणाम किया |

हनुमान जी ने कहा – “प्रभु जैसा कि आप जानते हैं कि मै मानवलोक से आया हूँ | मेरी एक भक्त एक रोग से ग्रस्त हैं | अश्विन भी उस रोग का उपचार नहीं कर सके | उस रोग का उपचार करना आवश्यक है ताकि वह मोक्ष के रास्ते पर चलकर इसी जीबन में मुक्ति पा सके | मुझे कृपा आप ...”

भगवान् विष्णु ने बीच में ही हनुमान को रोका और बोले – “अश्विनों ने अपनी इच्छा तुमसे पहले प्रकट की है , हनुमान | इसलिए पहले उनकी इच्छा पूर्ण होगी | वे उस दृश्य को देखना चाहते हैं जब उर्मी की आत्मा यहाँ से (सदियों पहले) रवाना हुई थी | मै तुन्हें एक मंत्र देता हूँ जिससे तुम उस स्थान पर पहुँच जाओगे जहाँ से उर्मी की आत्मा मुक्तिसागर से पृथक होकर बाहर निकलती दिखाई देगी |”

[नोट : मानवलोक के दृष्टिकोण से जिस समय यह वार्तालाप हो रहा है उस समय उर्मी मानवलोक में एक वृक्ष के नीचे लेटी हुई है और भगवान् विष्णु विष्णुलोक में वह दृश्य दिखाने के बारे में बात कर रहे जिसमे उर्मी की आत्मा सदियों पहले मुक्तिसागर से निकलकर नश्वर लोक की और रवाना हुई थी |]

श्री हनुमान जी ने विष्णु जी द्वारा दिया गया मंत्र जपा जिससे कि वे महासमुद्र के एक स्थान पर पहुंचे | वहां पर बहुत सारी लहरे उठ रही थी | अश्विन भ्रमित हो गए , “हे शक्तिमान हनुमान , यहाँ तो जहाँ तक दृष्टि जाती है तरह तरह की आकृति में लहरें यहाँ से उठ रही हैं | हम यह कैसे पता लगायेंगे कि इनमे से उर्मी की आत्मा कौन सी है?”


हनुमान जी ने कोई उत्तर नहीं दिया | उन्होंने हाथ जोड़कर एक और मंत्र जपा | अश्विनो को केवल इतना समझ में आया कि मंत्र में ब्रह्मा जी का संबोधन था | जब हनुमान जी ने अपने हाथ खोले तो उनकी हथेली में एक विचित्र अंगूठी थी |

हनुमान जी ने कहा –“हे अश्विनो , यह अंगूठी बताएगी कि उर्मी की आत्मा किस स्थान से बाहर निकलेगी | ब्रह्मा जी का संकेत मिलते ही मै यह अंगूठी समुद्र के अन्दर फेंकूंगा | इस अंगूठी को देखते रहना | समुद्र से बाहर निकलने के पश्चात् आत्मा कुछ दूरी तक भगवान् विष्णु की दिशा में गतिमान होगी और फिर अदृश्य हो जाएगी क्योंकि विष्णु जी उसे मानव लोक भेज देंगे |”

अश्विनों ने अपनी दृष्टि उस अंगूठी पर टिका ली | एक अश्विन ने पुछा – “हनुमान जी , आत्मा समुद्र से निकलने के पश्चात् भगवान विष्णु की दिशा में गतिमान क्यों होती है ? वह तुरंत ही नश्वर लोक के लिए प्रस्थान क्यों नहीं कर जाती ?”

“जब कोई मानव कुछ बोलना चाहता है तो वह अपनी जिह्वा हिलाता है , है ना?” हनुमान जी ने उत्तर दिया – “उसी प्रकार जब आत्मा समुद्र से निकलकर भगवान् विष्णु से कुछ बोलना चाहती है तो इस तरह गतिमान होती है | जब तक आत्मा इस मुक्तिसागर में रहती है उसे भगवान विष्णु से कुछ भी बोलने की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि उसकी सारी इच्छाएं अन्दर ही पूर्ण रहती हैं | लेकिन जैसे ही आत्मा बाहर निकलती है , वह विष्णु जी से बोलना चाहती है | वह अपनी इच्छाएं बताना चाहती है | इसी कारण वह एक विशेष प्रकार से भगवान् विष्णु की तरफ गतिमान होती है | आत्मा और भगवान् विष्णु दिव्य संकेतों के माध्यम से वार्तालाप करते हैं | आपको विष्णु जी वहां विश्राम अवस्था में बैठे नजर आते हैं लेकिन वास्तव में वे इस समुद्र से उठ रही अनगिनत आत्माओं से संवाद कर रहे होते हैं | यह संवाद दिव्य संकेतों के माध्यम से होता है |”


“हे शक्तिमान हनुमान , इतनी सारी आत्माएं इस समुद्र से उठ रही है और गतिमान हो रही हैं किन्तु यहाँ पर कोई भी वार्तालाप होता सुनाई नहीं पड़ रहा है | यहाँ एक विचित्र शांति है | क्या हम उस वार्तालाप को सुनने के योग्य नहीं हैं ?” अश्व्विनों ने अपनी दृष्टि उस अंगूठी पर टिका रखी थी और हनुमान जी द्वारा उसे फेंके जाने का इन्तजार कर रहे थे |

हनुमान जी ने उत्तर दिया – “ब्रह्मा जी और माँ शारदा हमें ऊपर ब्रह्मलोक से देख रहे हैं | ब्रह्मा जी की कृपा से हमें यह अंगूठी प्राप्त हुई है जिससे कि हम उर्मी की आत्मा को यहाँ से उठता हुआ देखेंगे और माँ शारदा की कृपा से हम आत्मा और भगवान् विष्णु के बीच का वार्तालाप सुनेंगे | आपको वह वार्तालाप ध्यान से ....”


इससे पहले कि हनुमान जी अपना वाक्य पूरा कर पाते उन्हें ब्रह्मा जी का संकेत प्राप्त हुआ और उन्होंने उस अंगूठी को समुद्र में फेंक दिया |

अंगूठी समुद्र में अदृश्य हो गई और जहाँ अंगूठी गिरी वहां से एक श्वेत आकृति उभरी | वह उर्मी की आत्मा थी | आत्मा और विष्णु जी का संवाद शुरू हुआ :

आत्मा : प्रभु , मुझे कुछ इच्छाएं पूर्ण करने हेतु नश्वर लोक जाना हैं , कृपा आशीर्वाद दे |

विष्णु जी : हे आत्मा , नीचे बहुत सारे नश्वर संसार हैं जहाँ आत्माए अपनी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए जाती हैं | तुम्हे कौन से नश्वर संसार में जाना है ?

आत्मा : प्रभु , मेरी इच्छाओं के अनुरूप जो भी संसार उपयुक्त हो , मुझे वही भेज दीजिये |
विष्णु जी: तुम्हारी इच्छाओं की प्रकृति के अनुसार मै तुम्हे मानवलोक में भेज रहा हूँ | वहां जाकर तुम कोई देह धारण करोगी और उस देह का उपयोग अपनी इच्छाओं की प्राप्ति के लिए करोगी |

[नोट : मानवलोक के सन्दर्भ में देह धारण करना का अर्थ है एक नया जन्म लेना | लेकिन आत्मा जन्म नहीं लेती क्योंकि वह कभी नहीं मरती | इसलिए “देह धारण करना” वाक्यांश का प्रयोग देवता और मातंग करते हैं | यही उचित भी है |]

आत्मा : क्षमा करे प्रभु , लेकिन जो देह मै धारण करुँगी वह देह मेरी इच्छाएं पूर्ण करने में असफल हुई तो? क्या मै उस देह को छोड़कर कोई दूसरी देह धारण कर सकुंगी?

विष्णु जी: हाँ , अगर देह बूढी और जर्जर हो जाती है तो तुम उस देह को छोड़कर किसी दूसरी देह को धारण कर सकती हो | लेकिन मै तुम्हे एक सत्य का आभास कराना चाहता हूँ | जब तुम कोई देह धारण करोगी तो तुम उस देह और आसपास की देहों के प्रति आसक्त हो जाओगी | तुन्हारे अन्य देहो के साथ रिश्ते बन जायेंगे | तो 41028 तुम वह देह छोड़ना नहीं चाहोगी | तुम उसी देह से अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने का भरसक प्रयास करोगी | देह मृत होने के बाद ही तुम उसे छोड़ना चाहोगी, उससे पहले तुम्हारा देह छोड़ने का मन ही नहीं होगा |

आत्मा : यह तो बहुत भयानक प्रतीत हो रहा है , प्रभु | अगर कोई देह इच्छाएं पूर्ण करने योग्य नहीं है तो भी उस देह में इसलिए निवास करना क्योंकि उस देह के दूसरी देहो के साथ रिश्ते बन गए हैं , यह तो नरक जैसा प्रतीत हो रहा है | यह तो एक प्रकार की यंत्रणा है |”
विष्णु जी : एक इच्छा से दूसरी इच्छा जन्म लेती है | अपनी इच्छाएं पूर्ण करने की प्रक्रिया में तुम और भी बहुत सारी इच्छाएं अपने अन्दर बसा लोगी | वे नई इच्छाएं तुन्हें उन नए रिश्तों से बांधे रखेंगी | ये मानवलोक का स्वभाव है |

आत्मा : क्षमा कीजिये प्रभु | इससे पहले कि मै मानवलोक में कोई देह धारण करूँ , मेरी कुछ शंकाएं हैं | मान लीजिये कि मेरी कुछ अधूरी इच्छाएं हैं जिसे मेरी देह पूर्ण नहीं कर पा रही है | फिर भी मै उस देह का त्याग नहीं कर पा रही हूँ अपनी आसक्तियों के कारण | क्या उस अवस्था में मैं कुछ समय के लिए वह देह त्यागकर वापिस उसी देह में प्रवेश कर सकती हूँ ?

विष्णु जी : लेकिन तुम कुछ समय के लिए देह त्यागकर उसमे वापिस क्यों आना चाहोगी ? और देह त्यागकर कुछ समय के लिए कहाँ जाना चाहोगी ?

आत्मा : प्रभु , उस थोड़े समय में मै मानवलोक को छोड़कर किसी अन्य लोक में अपनी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए जाना चाहूंगी | इच्छाएं पूर्ण करने के पश्चात् मैं वापिस मानवलोक में आकर उसी देह में पुनः प्रवेश कर लुंगी | मेरा मतलब है ... मै सिर्फ पूछ रही हूँ | क्या मानवलोक में देह धारण करने के पश्चात् ऐसा करना संभव होगा ?

विष्णु जी : हाँ , ऐसा करना संभव होगा | तुम मानवलोक में अपनी देह को विश्राम अवस्था में छोड़कर स्वपनलोक में जा सकोगी | स्वपनलोक मायावी लोक है | वहां पर तुम किसी भी देह को धारण करके अपनी इच्छाएं पूर्ण कर पाओगी | फिर तुम मानव लोक में आकर पुनः उसी देह को धारण कर सकती हो |

आत्मा : वाह, फिर तो मै अवश्य ही मानवलोक में जाकर देह धारण करना चाहूंगी |

(भगवान् विष्णु कुछ नहीं बोले )

आत्मा : प्रभु , एक और शंका है | मान लीजिये मैंने मानव लोक में एक देह धारण की और उस देह के माध्यम से अपनी सारी इच्छाएं पूर्ण करने का प्रयास किया | वह देह वृद्ध होकर अंततः मृत हो गई लेकिन मेरी इच्छाएं पूर्ण नहीं हुई | फिर मैंने वह देह छोड़कर मानव लोक में ही कोई अन्य देह धारण कर ली | फिर वही हुआ | मेरी इच्छाएं पूर्ण नहीं हुई किन्तु दूसरी देह भी मृत हो गई | यह क्रम कब तक चलेगा ? अपनी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए मुझे कितनी देह धारण करनी पड़ेंगी? क्या मुझे मानवलोक में जाने के पश्चात् आपका मार्गदर्शन प्राप्त होगा ?

हनुमान जी जो अश्विनों के साथ यह वार्तालाप सुन रहे थे, मुस्कुराये | बोले – “देखो अश्विनो , इस ब्रह्माण्ड के आश्चर्य देखो! इस आत्मा की सभी इच्छाएं पूर्ण थी जब तक कि यह इस मुक्तिसागर के अन्दर थी |अब जब यह ब्रह्मा जी के बल से समुद्र से बाहर आ गई गई , तो यह नश्वर संसारों में जाना चाहती है अपनी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए | यह नहीं जानती कि नश्वर संसार में इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होती | यह अब नश्वर संसार में एक देह से दूसरी , दूसरी से तीसरी देह इस तरह हज़ारों देह धारण करेगी | और अंत में इसे इसी समुद्र में आना होगा क्योंकि केवल यहाँ पर सारी इच्छाएं पूर्ण होती हैं | और इस तरह यह क्रम चलता रहेगा |”

अश्विनों ने सिर हिलाकर हनुमान जी के कथन से सहमति प्रकट की और पुनः वह संवाद सुनने लगे |

विष्णु जी : चिंता मत करो ऐ आत्मा ! मानवलोक में तुम्हारी तरह बहुत सारी आत्माएं हैं | मैं समय समय पर अवतार लेकर वहां फंसी आत्माओं को मार्ग दिखाने आता हूँ अवतार लेकर| बस इतना ध्यान रखना कि तुम इतनी अंधी मत हो जाना कि मुझे ही न पहचान पाओ |

आत्मा: मै आपको क्यों नहीं पहचानूंगी, प्रभु ? क्या मानवलोक इतना मायावी है कि मै आपको भी भूल जाउंगी| अगर ऐसा है तो मुझे किसी अन्य लोक में भेजिए जहाँ मै अपनी इच्छाएं पूर्ण कर पाऊं |

विष्णु जी : हे आत्मा , तुम्हारी प्रकृति के अनुसार तुम्हारे लिए मानव लोक ही उपयुक्त है | इसलिए मै तुम्हे किसी अन्य लोक में नहीं भेज सकता | और वैसे भी , सभी नश्वर लोक मायावी ही हैं | लेकिन भगवान् शिव हर नश्वर लोक में वास करते हैं | भगवान् शिव के कारण वहां पर कुछ भी स्थायी नहीं है | वहां के हर कण में विनाश का बीज है | वही विनाश तुम्हे आसक्तियों के अंधत्व से बचाकर तुम्हे जगाये रखेगा | जब भी कोई रिश्ता टूटे या कोई सगा संबंधी तुमसे वह जुदा हो , तो समझ लेना कि वह भगवान् शिव का तुम्हे मेरा बोध कराने का तरीका है |

आत्मा : अगर भगवान् शिव वहां हैं और आप भी समय समय पर अवतार लेकर वहां आते हैं तो मुझे भय की क्या आवश्यकता मेरे प्रभु! मै अपनी यात्रा प्रारंभ करने के लिए तैयार हूँ |

इस तरह भगवान् विष्णु ने आत्मा को मानवलोक में भेज दिया |

हनुमान जी और अश्विनों ने आत्मा को वहां से अदृश्य होते देखा | हनुमान जी बोले – “हे अश्विनो, आपने देखा कि कैसे उर्मी की आत्मा सदियों पहले यहाँ से रवाना हुई थी | क्या आपको अब समझ में आया कि एक आत्मा मानव देह से निकलकर कुछ समय के लिए जा सकती है और फिर वापिस उसी देह में आ सकती है | जब कोई मानव सोता है तब उसकी आत्मा देह को छोड़कर स्वपनलोक में चली जाती है | स्वपन लोक में वह दूसरी देह धारण करके अपनी गहरी इच्छाओं को पूर्ण करती है और वापिस आ जाती है |”

अश्विनों ने पुछा – “अगर स्वपनलोक मानवलोक से भिन्न कोई लोक है तो क्या हम वहां जा सकते हैं ?”

“हाँ, वहां जाने के लिए ही तो हम यहाँ आये हैं|” हनुमान जी ने उत्तर दिया – “इस समय उर्मी उस वृक्ष के नीचे लेटी हुई है और वह बालक यानि उसके पिछले जन्म का पुत्र उससे बहुत दूर किसी नगर में है | वे मानवलोक में तो नहीं मिल सकते लेकिन उनकी आत्माए स्वपनलोक में अवश्य मिल सकती हैं | उसका दौरों का रोग ठीक करने के लिए इतना प्रयाप्त है |”

हनुमान जी और अश्विन वहां से सीधे विष्णु जी के पास गए | हनुमान जी बोले – “हे प्रभु , अश्विनो की इच्छा पूरी हुई | अब कृपा स्वपनलोक में जाने के लिए मेरा मार्गदर्शन करे ताकि मै उर्मी का रोग ठीक कर सकूँ |”

भगवान् विष्णु ने उनको स्वपनलोक का मार्ग बताया | जब वे वहां पहुंचे तो वहां पूर्ण अन्धकार छाया हुआ था |

“हमने तो सोचा था कि स्वपनलोक एक रंग बिरंगा संसार है | लेकिन यहाँ तो पूर्णतः अन्धकार है |” अश्विनो ने कहा |

हनुमान जी बोले – “हे अश्विनो , यह जादुई संसार है | यहाँ पर आत्मा अपनी इच्छाओं के अनुसार अपना संसार बना सकती है | अगर किसी आत्मा की अपूर्ण इच्छा भय का रूप ले चुकी है तो उसे यहाँ पर भूत प्रेत दिखाई देते हैं | अगर किसी आत्मा की अपूर्ण इच्छा स्वादिष्ट भोजन है तो उसे यहाँ स्वादिष्ट भोजन दिखेगा|”


“लेकिन हमारी तो कोई अपूर्ण इच्छा नहीं है| हमें यहाँ क्या दिखाई देगा?” अश्विनों ने पूछा |

हनुमान जी बोले –“भगवान् विष्णु ने हमें शक्ति प्रदान की है कि हम उर्मी और उस बालक की आत्मा को यहाँ देख सकेंगे | उर्मी की आत्मा अभी यहाँ आई नहीं है इसलिए हमें यहाँ अन्धकार दिखाई दे रहा है |”

[नोट : उर्मी इस समय उसी वृक्ष के नीचे लेटी हुई थी | हनुमान जी ने विष्णुलोक और स्वपनलोक की यात्रा करने में कोई भी समय नहीं लिया था, हनुमान जी अपनी इच्छानुसार समय से मुक्त हो सकते हैं ]

मानवलोक में उर्मी वृक्ष के नीचे थकान के कारण निद्रा में चली गई | उसकी आत्मा उसकी मानव देह को छोड़कर स्वपनलोक में आ गई | हनुमान जी और अश्विन स्वपनलोक में पहले से ही उसकी आत्मा का इन्तजार कर रहे थे | स्वपनलोक में उन्होंने देखा कि उर्मी अपने घुटनों में अपना सिर दिए हुए रो रही थी |


(मानवलोक में उर्मी वृक्ष के नीचे सो रही थी और स्वपनलोक उसी की हम शक्ल एक औरत घुटनों में सिर दिए हुए रो रही थी )

उर्मी अक्सर स्वपन में यह देखा करती थी कि उसके पुत्र की मृत्यु हो गई गई और वह रो रही है | उस दिन भी उसने वही सपना देखा |


दूसरी तरफ उसके पिछले जन्म का पुत्र इस जन्म में दिल्ली नामक शहर में रहता है | जब उर्मी वहां वृक्ष के नीचे लेटी हुई थी !!


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