जय श्री राम जय श्री राम

रामायण काल के एक षड्यंत्र का रहस्य तो कभी उद्घाटित ही नहीं किया गया ....


रामायण काल के एक षड्यंत्र का रहस्य तो कभी उद्घाटित ही नहीं किया गया .............

हनुमान वाणी .......

अहि और महि रावण के भाई नहीं थे | अहि और महि परस्पर भाई थे और रावण महि की देह में प्रवेश किया करता था |

“अपने पाताल के प्रयोगों से रावण ने मानवलोक में भूत और भविष्य में विचरण करना सीख लिया | लेकिन उसने केवल वही सीखा जो शुक्र उसे सीखाना चाहते थे | रावण के कर्म अब उसकी इच्छा शक्ति का आधार खो चुके थे | उसकी आत्मा को शुक्र ने अपने असुरों के माध्यम से जकड रखा था और शुक्र उसका प्रयोग भगवान् विष्णु के विपरीत बुने जा रहे अपने षडयंत्र में कर रहे थे |

“रावण द्वारा हासिल की गई परलोक शक्तियां और भगवान् राम का उन शक्तियों को नष्ट करना , भगवान् राम की लीलाओं का शानदार भाग है | वे लीलाएं केवल ज्ञानियों द्वारा बखान की जा सकती हैं, वे भी केवल योग्य लोगों के सामने |

“शुक्र ने रावण को भरोसा दिला रखा था कि जब तक रावण अपनी देह को सुरक्षित रखेगा तब तक अन्य सभी को पुनर्जीवित किया जा सकता है | इसलिए युद्धभूमि में रावण ने खुद कदम न रखकर अपने भाइयों तथा बेटों को भेजा | लेकिन शुक्र का षड्यंत्र भगवान् राम को काल के एक असीमित फंदे , जिसे महामाया कहा जाता है , में जकड़ने का था | जब लंका के सभी प्रमुख योद्धा मृत्यु को प्राप्त हो गए , तब शुक्र ने अपने महाषडयंत्र को कार्यान्वित किया | इस महा षडयंत्र की पहली कड़ी थी भगवान् राम को पाताल में ले जाना |

“हे मातंगो , पाताल में जाने के कई रास्ते हैं | साधारणतया एक आत्मा जिस रास्ते से जाती है उस रास्ते को “याद” कर लेती है और उसी रास्ते से वापिस भी आ जाती है | शुक्र का षडयंत्र भगवान् राम को एक ऐसे एकतरफा रास्ते से पाताल ले जाने का था जिससे कि उनके पास वापिस आने का एक ही रास्ता बचे जो उनको भूतकाल में ले जाए | कल्पना कीजिये , भगवान् राम उस रात लंका के सभी प्रमुख योद्धाओं को मारकर सोते हैं और अगली सुबह भूतकाल में उठकर देखते हैं कि कोई नहीं मरा है | वे पुनः युद्ध करते हैं , पुनः लंका के प्रमुख योद्धाओं को मारते हैं , पुनः सोते हैं और अगली सुबह उठकर देखते हैं कि अभी कोई नहीं मरा है | और ऐसा अनंत काल तक चलता रहता है | इसे कहते हैं काल का वह असीमित फंदा जिसका नाम महामाया है |

“शुक्र के षडयंत्र का केवल एक ही तोड़ था वो यह कि जब भगवान् राम को एकतरफा मार्ग से ले जाया जाए तो हमारे लोक की कोई अन्य आत्मा साधारण रास्ते से जाए और उन्हें अपने साथ सुरक्षित ‘वर्तमान’ में वापिस ले आये | शुक्र जानता था कि हमारी तरफ कोई भी ऐसा नहीं था जिसे पाताल का रास्ता मालुम हो | और युद्ध के नियमों के अनुसार कोई देवता भगवान् राम की सहायता करने नहीं आ सकते थे | अपने षड़यंत्र को और भी पक्का करने के लिए शुक्र ने मुझे और लक्ष्मण को भी भगवान् राम के साथ अपहृत करके पाताल में ले जाने का निर्णय लिया , क्योंकि उसे शक था कि भगवान् राम के करीब होने के कारण शायद हमने उनसे पाताल जाना सीख लिया हो |

“जिस एकतरफा रास्ते से शुक्र हमें अपहृत करना चाह रहा था वह रास्ता स्वपनलोक से होकर जाता है | उसके षडयंत्र की सफलता के लिए हम तीनो - भगवान् राम , लक्ष्मण और मै - को उस रात निद्रा में होना था |
“उसका षड्यंत्र पहले चरण में थोडा सा पटरी पर उतर गया | कारण बने उसके अपने असुर | असुरों ने रावण को कई मायनों में शक्तिशाली बनाया था तो कई मायनों में कमजोर भी कर दिया था | उसके अपने भाई विभीषण ने उसका साथ ऍन समय पर छोड़ दिया था क्योंकि असुरों ने रावण के स्वभाव को अहंकारी और अशिष्ट कर दिया था | इतना ही नहीं , उसके कई वफादार लोग उसके विरुद्ध हो गए थे और वे अन्दर ही अन्दर उसके विरुद्ध कार्य कर रहे थे | वे विभीषण को गुप्त सूचनाएँ पहुंचा रहे थे जो हमारी तरफ हो गया था | उस रात भी विभीषण को गुप्त सूचना मिली कि रावण भगवान् राम के अपहरण की योजना बना रहा है | उस सूचना में पाताल का उल्लेख नहीं था | विभीषण ने मुझको चौकन्ना कर दिया जिसके कारण मै जागता रहा और उस तम्बू के बाहर पहरा देता रहा जहाँ भगवान् राम और लक्ष्मण सो रहे थे |

“शुक्र का मुझे अपहृत करने का षडयंत्र असफल हो गया क्योंकि मैं सोया ही नहीं , लेकिन वह भगवान् राम और लक्ष्मण का अपहरण करने में कामयाब हो गया | यह शुक्र का कोई अचानक बनाया हुआ षड्यंत्र नहीं था | भगवान् राम ने बाद में मुझे बताया कि शुक्र उस रात के लिए लम्बे समय से घटनाओं को अंजाम दे रहा था ताकि वह भगवान् राम को उस स्थिति में ले जाए जिसे “सपने के अन्दर सपना” कहते हैं | नींद में जाने से पहले विभीषण उनको तम्बू में मिलने आया था | मानवलोक में निंद्रा को प्राप्त होने के बाद वे स्वपनलोक पहुंचे जहाँ उन्हें विभीषण फिर से तम्बू में दिखाई दिए | स्वपनलोक में भी वे निद्रा में चले गए | इसे कहते हैं “सपने के अन्दर सपना” स्थिति | स्वपनलोक में निद्रा में चले जाने के बाद वे “पाताल के स्वपनलोक” पहुंचे जहाँ पर उन्हें फिर से विभीषण दिखाई दिए | लेकिन वास्तव में वे विभीषण नहीं अपितु विभीषण के रूप में “अहि” था जो उनको वहां से पाताल ले गया |

“देर रात विभीषण को सूचना मिली कि रावण “भगवान् राम के अपहरण” की ख़ुशी में आनंद के अतिरेक में झूम रहा है | विभीषण इस सूचना के साथ मेरे पास दौड़े दौड़े आये | मैंने कहा - “ऐसा कैसे संभव है? मैं यहाँ द्वार पर पूरी तरह चौकन्ना हूँ | मैं यहाँ से एक पल के लिए भी नहीं हिला हूँ |”

“हमने तम्बू के अन्दर जाकर देखा तो भगवान् राम और लक्षमण आराम से सो रहे थे | किसी अनहोनी का कोई चिन्ह भी मौजूद नहीं था | “देखा, मैंने कहा था न ! आपकी सूचना गलत है |” मैंने राहत की सांस ली |
“लेकिन विभीषण को सूचना की सत्यता पर पूर्ण विश्वास था | उसके सूत्र भरोसे लायक थे | उसने भगवान् राम को जगाने की कोशिश की | वह नहीं जगा सका | जब कोई आत्मा स्वपनलोक में जाती है तो उसे तुरंत देह में बुलाया जा सकता है , देह की इन्द्रियों को आह्वान देकर | लेकिन भगवान् राम और लक्षमण की (परम) आत्माएं पाताल में ले जाई जा चुकी थी और हमारी तरफ कोई ऐसा नहीं था जिसे पाताल से आत्मा को वापिस लाना आता हो |

*****“जब तक मैं अपने प्रभु भगवान् राम से नहीं मिला था , मुझे तो कुछ भी नही आता था | उनकी कृपा से ही मुझे एक एक करके अपनी शक्तियों का बोध हुआ था | जब भगवन राम और लक्षमण का अपहरण हुआ तब मुझे पाताल के बारे में कुछ भी मालुम नहीं था | फिर मैंने सोचा - “कोई सर्वशक्तिशाली भगवान् का अपहरण कैसे कर सकता है? यह निश्चित ही भगवान् राम की कोई लीला होगी जिसका उद्देश्य मेरी आंतरिक शक्तियों को उजागर करना होगा जैसा कि अब तक होता आ रहा है |”

“मैं भगवान् राम के चरणों में बैठकर उनका ध्यान करने लगा | मैंने एक दृश्य देखा कि कुछ विचित्र से प्राणी अन्य दो विचित्र प्राणियों के चारों और खड़े हैं | मेरी आत्मा मुझे बता रही थी कि मध्य में उपस्थित वे दो विचित्र प्राणी मेरे भगवान् राम और लक्षमण हैं | शीघ्र ही मैं गहरी साधना में चला गया और मैंने स्वयं को एक विचित्र द्वार के समक्ष पाया | आश्चर्य यह था कि द्वारपाल ने मुझे पिता कहकर पुकारा | और मुझे भी पिता का संबोधन अटपटा नहीं लगा | मुझे भी अनुभव हो रहा था कि वह मेरा ही पुत्र था | उसका नाम मकरध्वज था |

“क्या आपको समझ में आया , हे बुद्धिमान मातंगो , कि मेरे साथ क्या हो रहा था ? मेरी आत्मा ने अग्निकुश नामक पाताल के एक जीव की देह में प्रवेश कर लिया था और वह मकरध्वज अग्निकुश का पुत्र था | इससे मेरा काम और भी आसान हो गया | उसने मुझे “अपहृत आत्माओं” - भगवान् राम और लक्ष्मण - जो अहि और महि द्वारा पाताल की दो देहों में कैद कर रखे थे , तक पहुँचाया | भगवान् राम मुझे तुरंत पहचान गए | मैं उन्हें मानवलोक ले आया - उस रास्ते से नहीं जो शुक्र चाहता था , अपितु उस रास्ते से जिसका प्रयोग करके मैं पाताल पहुंचा था | फलस्वरूप हम सब सुरक्षित मानवलोक में लौट आये , वो भी समय और स्थान के सही निर्देशांको पर , जहाँ रावण की सेना के सभी मुख्य योद्धाओं की मृत्यु हो चुकी थी | इस तरह भगवान् राम को काल के फंदे में फंसाने का शुक्र का षड्यंत्र असफल हो गया |

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