#वैदिक समता
#वैदिकी_समता
श्रीराम! आज के चौतरफा वैमनस्य व षड्यंत्रजन्य विरोध से देश में हिन्दूधर्मावलंबी त्रस्त हैं।विरोधियों के ऐसे भयानक जाल से बचने का एक मात्र उपाय सभी हिंदुओंका आपस में समत्व भाव का गंभीरता व विवेक पूर्व अवलंबन मात्र है।कोई पार्टी या राजनैतिक नेता मात्र आंशिक रूपसे ही कुछ सहयोग भले करदें किन्तु निदान नहीं दे सकते। देखें हमारी वेदमाता क्य्या कहतीं हैं---
#सामानो_मंत्रःसमितिः_समानं_मनः_सह_चित्तमेषाम्। #समानं_मंत्रमभि_मंत्रये_वः_समानेन_वो_हविषा_जुहोमि।।(ऋग्वेदः--१०--१९१--०३)।
अर्थ:-- सभी (राष्ट्र यज्ञ के सदस्यों)के --
#समानं_मंत्र: स्तुति गुप्त भाषण, विचार समान (एक प्रकारके)हों।
#समितिःसमानी =प्राप्ति(फल) भी समान होना चाहिए।
#समानं_मनः अंतःकरण भी समान ही होने चाहिए।।
#सहचित्तम् -सभी के विचार से उत्पन्न ज्ञान एकसमान(परस्पर मिलाकर एक प्रयोजन सिद्ध करने वाले)हों।
#अहं_वः_समानं_मन्त्रं_अभिमन्त्रये-हम आप सभीकी एकता के लिए एक समान ही मंत्रों का संस्कार करते है ।
#समानेन_हविषा_जुहोमि--एक जैसी स्वसमर्पण रूप हाविष के द्वारा होम करते हैं।
श्रीराम! आज के चौतरफा वैमनस्य व षड्यंत्रजन्य विरोध से देश में हिन्दूधर्मावलंबी त्रस्त हैं।विरोधियों के ऐसे भयानक जाल से बचने का एक मात्र उपाय सभी हिंदुओंका आपस में समत्व भाव का गंभीरता व विवेक पूर्व अवलंबन मात्र है।कोई पार्टी या राजनैतिक नेता मात्र आंशिक रूपसे ही कुछ सहयोग भले करदें किन्तु निदान नहीं दे सकते। देखें हमारी वेदमाता क्य्या कहतीं हैं---
#सामानो_मंत्रःसमितिः_समानं_मनः_सह_चित्तमेषाम्। #समानं_मंत्रमभि_मंत्रये_वः_समानेन_वो_हविषा_जुहोमि।।(ऋग्वेदः--१०--१९१--०३)।
अर्थ:-- सभी (राष्ट्र यज्ञ के सदस्यों)के --
#समानं_मंत्र: स्तुति गुप्त भाषण, विचार समान (एक प्रकारके)हों।
#समितिःसमानी =प्राप्ति(फल) भी समान होना चाहिए।
#समानं_मनः अंतःकरण भी समान ही होने चाहिए।।
#सहचित्तम् -सभी के विचार से उत्पन्न ज्ञान एकसमान(परस्पर मिलाकर एक प्रयोजन सिद्ध करने वाले)हों।
#अहं_वः_समानं_मन्त्रं_अभिमन्त्रये-हम आप सभीकी एकता के लिए एक समान ही मंत्रों का संस्कार करते है ।
#समानेन_हविषा_जुहोमि--एक जैसी स्वसमर्पण रूप हाविष के द्वारा होम करते हैं।
इस प्रकार सभी के साधनों विचारों उद्देश्यों में समानता होने का उपदेश हजारों माताओं से भी अधिक वात्सल्यमयी माताश्रुति कर रही हैं।।
अणु परमाणु से लेकर संसाकार के सभी पदार्थों में सभी जीव मात्र में भेद होते हैं। किंतु इन भेदों में ही अभेद (समत्व) को खोजकर ही हम सभी लौकिकालौकिक उत्कर्ष प्राप्त कर सकते हैं।।
एक ही घर में अनेक सदस्य होते हैं। सभी की आकृति रूप रंग स्वाभाव विचार आदि सर्वथा भिन्न भिन्न ही होते हैं, फिर भी वे सभी एकसाथ मिल जुल कर सम्यक् जीवन जी लेते हैं। अलग अलग रहकर कुछ नहीं कर पाते। वैसे ही देश भी एक विशाल घर ही होता है, जिसमें विभिन्न भाषाई जाति स्वभाव के जन निवास करते हैं।और ये भी तभी समुचित जीवन जी सकते हैं, जब विभिन्न भेदों में भी अभेद(समत्व) को समझ लेंगे।
एक ही घर में अनेक सदस्य होते हैं। सभी की आकृति रूप रंग स्वाभाव विचार आदि सर्वथा भिन्न भिन्न ही होते हैं, फिर भी वे सभी एकसाथ मिल जुल कर सम्यक् जीवन जी लेते हैं। अलग अलग रहकर कुछ नहीं कर पाते। वैसे ही देश भी एक विशाल घर ही होता है, जिसमें विभिन्न भाषाई जाति स्वभाव के जन निवास करते हैं।और ये भी तभी समुचित जीवन जी सकते हैं, जब विभिन्न भेदों में भी अभेद(समत्व) को समझ लेंगे।

यदि कोई बादरी पड़ोसी उसी घर के सदस्यों में""तुम्हें छोटा कक्ष मिला है, तुम्हे छोटा या अधिक परिश्रम वाला काम मिल है, तुम्हारे साथ भेद व्यवहार किया जाता है, तुम्हें हल्के वस्त्रादि दिए जाते है""इत्यादि प्रकार से कुत्सित भाव भरदे, और वे सदस्य उसे ही स्वीकार करलें, तो एक ही घर में लड़ाई झगड़ा व अनेक प्रकार के उपद्रव होकर घरका सत्यानाश अवश्यम्भावी हो जाता है। वैसे ही एक देश का भी जाति दलित ऊंच नीच, और न जाने कितने अनर्थक शब्दों द्वारा आरोपित कुत्सित भावों से समस्त राष्ट्र का सर्वतोभावेन सत्यानाश होना निश्चित है।
अतः हिंदुओं को चाहिए के कि विदेशियों व विदेशीमानसिकताओं वाले विघटक मिशनरियों, व ऐसे ही अन्य संगठनों के षड्यंत्र से बचें। आपस में सौहार्द लाकर सहयोग पूर्वक अपना समाजका देशका निर्माण करें।।
एक विशेष बात यह कि--कोई समानता का अर्थ यह न समझालें कि --एक घर के सभी सदस्यों को एक प्रकार की ही औषधि चाहिए।या भोजन परिमाप, या वस्त्रादि परिमाप एक बराबर ही चाहिए। समानता का अर्थ है--सभी के लिए उनकी योग्यतानुरूप साधन सामग्री का विभाग् या भेद। ऐसा नहीं कि सभी को केवल पांच पांच रोटी ही मिलनी चाहिए।या सभी को गणित या विज्ञान ही पढ़नी चाहिए।। आज सबसे अधिक ऐसी विषय में हिन्दू जनता खास तौर पर शूद्र वर्ग मूर्ख बनाये जा रहे हैं।।जैश्री राम।
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