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श्री रामचंद्र जी ने जन्म लेने के लिये राजा दशरथ का ही घर क़्यो चुना ??

श्री रामचन्द्र जी ने जन्म लेने के लिए राजा दशरथ का घर ही क्यों चुना जाने रहस्य
भोजन न लेने का व्रत रखने से इच्छापूर्ती में सहायता मिलती है | जब आप अपने भाग्य में लिखा भोजन नहीं करते हैं तो इंद्र देव आपके ऋणी हो जाते हैं और आपको हर्जाने के रूप में वही देते हैं जो आप व्रत तोड़ते समय इच्छा कर रहे होते हैं
“आप निश्चय ही इंद्र का पद लेने के लिए सक्षम नहीं हो लेकिन राजा दशरथ अवश्य ही थे | लेकिन उन्होंने इंद्र के आधिपत्य को कभी चुनौती नहीं दी | हाँ वे अपने भाग्य का उल्लंघन प्राय: करते थे | लेकिन जब इंद्र देव उनसे हर्जाना स्वीकार करने की प्रार्थना करते थे , वे हर्जाना स्वीकार कर लेते थे |
“कोसल राज्य में यह आम बात थी | राजा दशरथ अपने भाग्य का उल्लंघन करते और इंद्र देव प्रकट होकर कहते – “हे रघुवंशी राजन , आपने अपने भाग्य में जो लिखा था उसे स्वीकार न करके मुझे अपना ऋणी बना लिया है | अतः मुझे आपको हर्जाना देना पड़ेगा | मैं आपसे भीख मांगता हूँ , कृपा हर्जाने के रूप में कुछ मांगें |”
“और तब राजा दशरथ उत्तर देते – “हे बलशाली इंद्र , अगर आप मुझे हर्जाना देना चाहते हैं तो ऐसा करे कि मेरे राज्य के लोग समृद्ध रहें | मेरे राज्य में किसी चीज की कमी न हो |”
“इसी कारण कोसल राज्य खुशहाल था |
मैं आपको एक उदाहरण दूंगा जिससे आप ये जान जाओगे कि राजा दशरथ कैसे महान पुरुष थे |
“जब भगवान् राम को 14 वर्ष का वनवास मिला था तब राजा दशरथ ने अपने भाग्य का उल्लंघन करना शुरू कर दिया | उनके भाग्य में अच्छा खाना लिखा था , उन्होंने खाना छोड़ दिया ; उनके भाग्य में लिखा था कि भगवान राम की वापसी तक वे राज्य करेंगे , लेकिन उन्होंने वह अस्वीकार कर दिया ; उनके भाग्य में लिखा था कि वे पुत्र राम की जुदाई में अपने मन की अद्भुत शक्ति का परिचय देंगे , लेकिन उन्होंने ऐसा स्वीकार नहीं किया और वे टूट गए ; और अंततः उनके भाग्य में लिखा था कि वे अभी और कई साल जियेंगे किन्तु उन्होंने अपना जीवन त्याग दिया |"
“जब उन्होंने अपना देह त्याग कर दिया , इंद्र देव उनकी आत्मा से बोले – “हे रघुवंशी , अपने भाग्य में जो लिखा था उसे अस्वीकार करके आपने मुझे बहुत ऋणी बना दिया है | मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ , कृपा मुझसे हर्जाना स्वीकार करें |”
“इस बार राजा दशरथ ने माँगा – “हे महाबली इंद्र, मेरा पुत्र 14 साल के लिए वन गया है | वन में जीवन बहुत कठिन है | कई बार पानी की झलक तक पाने के लिए मीलो चलना पड़ता है | कई बार खाने के लिए सूखे पत्ते भी नहीं मिलते | हे इंद्र देव , आप इस संसार में कमी तथा भरपूरता के लिए जिम्मेदार हैं | मैं आपसे मांगता हूँ , मेरे पुत्र तथा पुत्रवधु जो वन में गए हैं उन्हें किसी चीज की कमी न झेलनी पड़े |”
“परिणामस्वरूप भगवान् राम को जंगल में रोजमर्रा की वस्तुए पाने के लिए अपनी दैवीय शक्ति का कभी प्रयोग नहीं करना पड़ा | जंगल में एक सामान्य मनुष्य की तरह रहते हुए उन्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं झेलनी पड़ी |
यह थी राजा दशरथ की महानता | इसलिए भगवान् विष्णु ने त्रेता युग में मानवलोक में आने के लिए उनको अपने पिता के रूप में चुना |
“महारानी कौशल्या भी कम नहीं थी | अगर महाराज दशरथ की क्षमता भगवान् इंद्र के समान थी , रानी कौशल्या की क्षमता कालदेव की क्षमता की बराबरी करती थी |” हनुमान जी ने बताया |

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