वह फल है अथवा सूर्य चिरंजीवी हनुमान जी ने खोला राज ....
अद्धभुत कथा : (शेष भाग)
वह फल है अथवा सूर्य ? चिरंजीवी हनुमान जी ने खोला राज ....
#कथा का शेष भाग .............
उर्वा ने उत्तर दिया - “मैं इसे अपनी आँखों से देख रहा हूँ प्रभु ! अपनी त्वचा से महसूस कर रहा हूँ | अपने मन से इसे समझ रहा हूँ | मेरा तन-मन ही वह यंत्र है जिसका उपयोग करके मेरी आत्मा इसका (सूर्य का) अनुभव कर रही है |
”
“तुम अपना यंत्र बदलने का प्रयास क्यों नहीं करते ? सिर्फ यह देखने के लिए कि क्या सूर्य सभी यंत्रों से एक जैसा ही दिखाई देता है?
”
“यन्त्र बदलू ? प्रभु ... क्या आपका अर्थ है कि मैं अपना मानव शरीर त्यागकर कोई और शरीर धारण कर लुं? मै देह बदलने की विद्या में निपुण नहीं हूँ प्रभु | लेकिन मै सीखना अवश्य चाहूँगा कि देह कैसे बदली जाती है ... ठीक उस तरह जैसे मै अपने वस्त्र बदलता हूँ |” उर्वा ने हाथ जोड़कर कहा |
हनुमान जी ने उर्मी की ओर देखा | वह पूजा में उपस्थित गण की पहली पंक्ति में बैठी थी | उर्मी हनुमान जी से निर्देश पाने की प्रतीक्षा में हाथ जोड़कर खड़ी हो गई | उसे निर्देश नहीं , एक प्रश्न मिला , “उर्मी , तुम्हे वहां क्या दिखाई दे रहा है?”
“सूर्य, प्रभु ! ... आग का दैत्याकार गोला जिसके चारों ओर हमारी पृथ्वी घूमती है |”
“क्या तुम देखना चाहोगी कि वहां वानरों को क्या दिखाई देता है?”
“हाँ प्रभु ,मेरी इच्छा ... है ...
”
जैसे ही उर्मी ने “इच्छा” शब्द बोला , उसकी आँखें फ़ैल गई और उसकी जीभ हकलाने लगी | वह अचेत हो रही थी | उसके आस पास बैठी अन्य मातंग औरतों ने खड़े होकर उसकी देह को सहारा दिया | कुछ पल बाद उर्मी की देह धरा पर अचेत लेटी हुई थी जबकि वानर कपिद्रष्ट जो हनुमान जी के पास सोया था वह जाग गया | वास्तव में उर्मी की आत्मा वानर की देह में प्रवेश कर गई थी जबकि वानर की आत्मा अभी तक स्वपनलोक में ही थी | हनुमान जी ने उर्मी , जो कि वानर की देह में थी , से पूछा - “तुम्हे क्या दिखाई दे रहा है वहां आकाश में?
”
“फल ... प्रभु ... चिरंजीवी फल !” उत्तर आया |
हनुमान जी ने उर्वा का रुख किया जो कि उसके सामने खोले जा रहे रहस्य को समझने की पूरी कोशिश कर रहा था | हनुमान जी बोले - “जैसे ही तुम अपना यन्त्र अर्थात देह बदलते हो तुम्हारे अनुभव भी बदल जाते हैं |”
“लेकिन वास्तविकता क्या है प्रभु ?” उर्वा विश्वासहीन आवाज में बोला - “वह सूर्य है , जैसा हम मनुष्यों को दिखता है अथवा वह एक फल है जैसा वानरों को दिखता है?”
“वानर देह के लिए वह एक फल है और मानव देह के लिए सूर्य | अन्य देहों के लिए कुछ ओर !”
उर्वा आगे भी कुछ पूछना छह रहा था लेकिन प्रश्न के लिए उसे सही शब्द नहीं मिल रहे थे | इसलिए वह अपेक्षा कर रहा था कि हनुमान जी “वास्तविकता” के बारे में थोडा वर्णन और करें | हनुमान जी ने उसे निराश नहीं किया | वे बोले -“मुझे त्रिदेवों ने इस धरा पर वानर देह में क्यों भेजा , मानव देह में क्यों नहीं ? क्योंकि आत्माएं , जब किसी देह में ज्यादा समय तक रहती हैं तो वे यह भूल जाती हैं कि वे आत्मा हैं | वे स्वयं को देह समझने लगती हैं |”
सभी मातंग एकाग्रता से हनुमान जी के शब्दों को सुन रहे थे | हनुमान जी आगे बोले - “आप लोग इस समय मानवों में सबसे अधिक ज्ञानी हैं और आप भी इस रहस्य को समझने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं जो मैं आपके सामने खोल रहा हूँ | संसार के अन्य मानवो के बारे में विचार कीजिये | वे वानरों के साथ वार्तालाप नहीं कर सकते | वे वानरों का पक्ष नहीं जानते | वे सब लोग सूर्य को केवल सूर्य के रूप में देखते हैं और उन्होंने यह मत बना लिया है कि जो वे देखते हैं केवल वही एक वास्तविकता है | वे अन्य वास्तविकताओं, जैसे कि वानरों को दिखाई देने वाली वास्तविकता , से अनभिज्ञ हैं | उन्होंने सुदूर अंतरिक्ष में खोज करने के बड़े बड़े यंत्र बना लिए हैं किन्तु वे भूल गए हैं कि मुख्य यन्त्र तो उनका अपना तन-मन है | जिन चीजों को वे यंत्र कहते हैं वे तो केवल मुख्य यन्त्र अर्थान्त तन मन का विस्तार भर हैं |
भगवान राम जानते थे कि जैसे जैसे संसार कलियुग की ओर बढेगा मनुष्य अन्य वास्तविकताओं से पूर्णत: अंधे हो जायेंगे | इसीलिए उन्होंने इच्छा जताई कि सभी मनुष्य मुझे वानर रूप में पूजें | अगर आप यह नहीं समझते कि मनुष्यों को अनुभव होने वाली वास्तविकता अलग है और वानरों को होने वाली अलग , तो मेरी पूजा अधूरी है |
”
जिस तन्मयता से मातंग हनुमान जी को सुन रहे थे वह तब टूटी जब मातंग महिलायें जहाँ बैठी थी वहां हलचल शुरू हुई | उर्मी कराह रही थी | उसकी आत्मा उसकी देह में वापिस आ रही थी | कपिद्रष्ट वानर भी उठ गया था | बाबा मातंग ने पूजा की प्रक्रिया चालू करना ठीक समझा | वह बोले - “हे प्रभु , अब जबकि फल अर्पण हो चुके हैं , यजमान बसंत आपके चरणों में लाल चूरा अर्पित करने की इच्छा रखते हैं |
”
लाल चूरा हनुमान जी की हर पूजा में आवश्यक है | मातंग इस चूरे को विभिन्न पत्तियों से बनाते हैं | बाबा मातंग ने बसंत की अर्पण की टोकरी के पास रखी लाल चूरे की प्याली उठाई | कपिद्रष्ट वानर बाबा के पास आकर बैठ गया |
बाबा ने पूरा लाल चूरा कपिद्रष्ट वानर पर उड़ेल दिया | कपिद्रष्ट पवित्र लाल चूरे में स्नान करके आनंदित लग रहा था | हनुमान जी मुस्कुराये और बोले - “मुझे वह दिन आज भी याद है जब भगवान् राम ने मुझे लाल चुरा स्वयं अपने तन पर उड़ेलने का निर्देश दिया था | भगवान् राम ने मुझे बताया था कि यह लाल चूरा मनुष्यों को यह स्मरण दिलाएगा कि उनकी वास्तविकता ही मात्र वास्तविकता नहीं है | वानरों की अपनी अलग वास्तविकता है और अन्य प्राणियों की अलग | लेकिन कलियुग के इस पड़ाव पर इस संसार में केवल मुट्ठी भर लोग ही ऐसे हैं जो इस रहस्य को समझ सकते हैं | बाकी लोगों को केवल भगवान् कल्कि ही यह रहस्य समझा सकते हैं |”
मातांगो के हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि उन्हें हनुमान जी द्वारा बताया रहस्य समझ में आ गया था | बाबा बोले - “यजमान बसंत का अर्पण अब पूर्ण हुआ | अब मै 6 ब्राह्मणों से आग्रह करता हूँ कि वे इन तीन टोकरियों को उठाकर हनुमंडल से बाहर ले जाएँ और फलों को बाहर प्रतीक्षा कर रहे वानरों में बाँट दें | (एक लाल टोकरी , एक श्वेत और एक वह जो हनुमान जी के चरणों में रखी थी |”
No comments