आजकल सेकुलर लोगों की बाढ़ सी आ गई है … जिसे देखो सनातन धर्म पर आये हुए संकटों को अनदेखा कर मानवता का उपदेश देने में लगा हुआ है
आजकल सेकुलर लोगों की बाढ़ सी आ गई है … जिसे देखो सनातन धर्म पर आये हुए संकटों को अनदेखा कर मानवता का उपदेश देने में लगा हुआ है ।
ये वो लोग हैं … जिन्हें वसुधैव कुटुम्बकम और सर्व धर्म समभाव के आगे कुछ भी कहना नहीं आता,
इन दो श्लोकों में ही इनका मानवता का ज्ञान पूरा हो जाता है जिनसे कभी गीता के ज्ञान की बात करो तो …भी केवल दो ही श्लोक याद आएंगे...
1. आत्मा अजर है, अमर है ….
2. कर्म कर… फल की चिंता मत कर...
बस हो गया पूरा गीता का ज्ञान, हो गया जीवन सफल गीता के ज्ञान की बात करते हुए अज्ञानी लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि अर्जुन को गीता का उपदेश देते समय भगवन श्री कृष्ण ने ही कहा था कि “हे पार्थ! जब शत्रु सामने खडा हो, जो घातक अस्त्रों – शस्त्रों के साथ हो, उससे दया कि आशा नहीं करनी चाहिए, इससे पहले कि वो तुम पर आक्रमण करे और कोई घातक प्रहार करे … आगे बढ़ कर उसका संहार कर दो।धर्म रक्षा हेतु समय समय पर शस्त्र उठाने की शिक्षा भी भगवान श्री कृष्ण ने ही दी ।पर मानवता की बात करने वाले मुसलमान – ईसाईयों के द्वारा मिलने वाले पारिश्रमिक पर जीने वाले …. नकली हिंदुओं को यह ज्ञान समझ में नहीं आते ….. क्योंकि …. विनाशकाले INTELLECTUAL बुद्धि
…अतः ऐसे समस्त सेकुलर्स के लिए एक छोटा सा उत्तर है, जो अपने आप में समस्त पापी जीव्हाओं को तत्काल प्रभाव से काट सकता है ।
प्रसंग महाभारत का है …
कर्ण कौरवों का सेनापति था और अर्जुन के साथ उसका घनघोर युद्ध जारी था ।कर्ण के रथ का एक चक्का जमीन में फंस गया ।उसे बाहर निकलने के लिए कर्ण रथ के नीचे उतरा और अर्जुन को उपदेश देने लगा –
“कायर पुरुष जैसे व्यवहार मत करो, शूरवीर निहत्थों पर प्रहार नहीं किया करते । धर्म के युद्ध नियम तो तुम जानते ही हो । तुम पराक्रमी भी हो ।बस मुझे रथ का यह चक्का बाहर निकलने का समय दो । मैं तुमसे या श्री कृष्ण से भयभीत नहीं हूँ, लेकिन तुमने क्षत्रीय कुल में जन्म लिया है, श्रेष्ठ वंश के पुत्र हो ।
हे अर्जुन ….. थोड़ी देर ठहरो ”परन्तु भगवन श्री कृष्ण ने अर्जुन को ठहरने नहीं दिया, उन्होंने कहा हे अर्जुन ” नीच व्यक्तियों को संकट के समय ही धर्म की याद आती है ।
भगवान श्री कृष्ण ने कर्ण को जो उत्तर दिया वो नित्य स्मरणीय है ….
उन्होने कहा "हे कर्णं द्रौपदी का चीर हरण करते समय तेरा धर्म कहाँ था?
जुए के कपटी खेल के समय तेरा धर्म कहाँ था"
द्रौपदी को भरी सभा में अपनी जांघ पर बैठने का आदेश देते समय तेरा धर्म कहाँ था,
भीम को सर्प दंश करवाने का षड़यंत्र करते समय तेरा धर्म कहाँ था,
बारह वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद लौटे पांडवों को उनका राज्य वापिस न करने का परामर्श देते समय तेरा धर्म कहाँ था,
इतना ही नही 16 वर्ष की आयु के अकेले और निहत्थे अभिमन्यु को तूने अनेक महारथियों के साथ घेरकर मृत्यु के मुख में डाला था ….
उस समय तेरा धर्म कहाँ गया था ?
श्री कृष्ण के प्रत्येक प्रश्न के अंत में मार्मिक प्रश्न “क्व ते धर्मस्तदा गतः ” … पूछा गया है ।
इन प्रश्नो का कर्ण के पास कोई उत्तर न था और उसका मन विच्छिन्न हो गया ।
श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा “पार्थ, देखते क्या हो, चलाओ बाण । इस अधर्मी को धर्म का उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं है..
मित्रों सनातन का इतिहास साक्षी है कि समस्त शूरवीरों ने ऐसा ही किया है.

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