जय श्री राम जय श्री राम

आज सारे विश्व के नीतिज्ञ इस बात को मानते हैं कि इस पृथ्वी पर श्रीकृष्ण से बड़ा राजनीति का जानकार कोई दूसरा नहीं था।


आज सारे विश्व के नीतिज्ञ इस बात को मानते हैं कि इस पृथ्वी पर श्रीकृष्ण से बड़ा राजनीति का जानकार कोई दूसरा नहीं था। विद्वानों की इस धारणा के बाद दूसरा नम्‍बर आता है कौटिल्य का और शेष आधे में विश्व के सभी राजनीतिज्ञ समेटे जा सकते हैं।

बस केवल ढाई राजनीतिज्ञ ही इस पृथ्वी पर हुए हैं। श्री कृष्ण ने विषम से विषम परिस्थिति में यह नहीं कहा कि मैं इस पृथ्वी पर ‘राजनीति’ की स्थापना करने को अवतरित हुआ। उनका स्पष्ट उद्घोष है-
”धर्मसंस्थापनार्थाय सम्‍भवामि युगे-युगे”मैं बार-बार आता हूं ताकि धर्म की स्थापना हो सके।विश्व के सर्वश्रेष्ठ नीति मर्मज्ञ कौटिल्य ने जब राष्ट्र की कल्पना की तो उसमें राजनीति शब्‍द कहीं नहीं था। आप सारा अर्थशास्त्र देख लें। आप को राजधर्म शब्‍द मिल जाएगा, आपको दंड नीति मिल जाएगी, राजनीति नहीं मिलेगी।
भगवान श्रीकृष्ण जैसे अवतारी पुरुष ने भी यह कभी नहीं कहा- मैं हर युग में ‘राजनीति’ की स्थापना करने आता हूं। वह कहते हैं- मैं धर्म की स्थापना और दुष्टों का नाश करने के लिए आता हूं। जिस दिन राष्ट्र ने भगवान कृष्ण के वचनों का मर्म समझ लिया, धर्म की स्थापना हो जाएगी और स्वत: ही हो जाएगा दुष्टों का नाश भी।

भगवान के वचन हैं, ‘विनाशाय च दुष्कृताम’ इसलिए आज का नेता धर्म से घबराया हुआ है। खास तो हैं ये कांग्रेस के नेता और उनके छल्ले। उन्हें पता है जिस दिन राष्ट्र ‘धर्म प्राण’ हुआ, राजनेता समाप्त हो जाएगा और उसे ऐसी जगह दफना दिया जाएगा, जहां से वह कभी निकल कर नहीं आ सके। इसी डर से उसने एक शब्‍द गढ़ लिया- धर्मनिरपेक्षता। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ आप स्वयं जान लें- जो सारे मानवीय गुणों से विमुख हो, उसी को धर्मनिरपेक्ष कहा जाता है। उसके पास मानवीय गुणों को धारण करने की शक्ति नहीं लेकिन उसने अपना एक नया धर्म बना लिया है

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