मकरध्वज उनके पुत्र नहीं थे , चिरंजीवी हनुमान जी ने किया खुलासा
मकरध्वज उनके पुत्र नहीं थे , चिरंजीवी हनुमान जी ने किया खुलासा
(निषेधात्मक)
प्रतिषेधात्मक टिपण्णी: यह अध्याय मातंगो की ‘लॉग बुक’ के निषेधित भाग से लिया गया है | इस अध्याय को पढना मना है अगर आपने पहले श्री हनुमान जी का ध्यान नहीं किया है शब्द रूप में कहीं व्याखित करने पर प्रतिबंध है !
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जब 6 ब्राह्मण अर्पण के फलों का वितरण करके हनुमंडल में वापिस आ गए , हनुमान जी ने यजमान बसंत से कहा - “हे यजमान , जिस श्रद्धा भाव से आपने इस अर्पण के रूप में अपने कर्मों को समर्पित किया है उससे मैं प्रसन्न हूँ | बोलो प्रसाद के रूप में क्या पाने की इच्छा रखते हो ?”
यजमान बसंत खड़े हुए | एकबारगी तो वे हनुमान जी से अपने खोये हुए रत्न मांगने को हुए किन्तु तुरंत ही मन बदला | हाथ जोड़कर बोले - “हे प्रभु, परम ज्ञान ही वह प्रसाद है जिसकी हम मातंग इच्छा रखते हैं | मुझे भी उसी ज्ञान की इच्छा है जो मोक्ष की ओर ले जाता है |
हनुमान जी मुस्कुराए | यह स्पष्ट नहीं था कि वे यजमान बसंत की रत्नों की अव्यक्त इच्छा पर मुस्कुराये या ज्ञान की व्यक्त इच्छा पर | वे बोले - “अपने स्थान पर बैठ जाओ यजमान |” जब बसंत बैठ गया हनुमान जी हनुमंडल में उपस्थित सभी मातंगो को संबोधित करते हुए बोले - “मै आपको रामायण की वह कड़ी बतलाता हूँ जो केवल भाग्यवान मानव समझ सकते हैं | मैं आपको रामायण की पाताल कड़ी बतलाता हूँ |”
हनुमंडल में सभी प्रभु की ओर उत्सुकता से देख रहे थे | होतर उर्वा की उत्सुकता का कोई ठिकाना नहीं था | वह खड़ा हुआ और बोला - “हे प्रभु , मै पाताल कड़ी को हमेशा से समझना चाहता था लेकिन बाबा मातंग यह कहकर बताने से इनकार कर देते थे कि यह निषेध है | हे प्रभु , इस कड़ी में ऐसा क्या है कि यह निषेधित है ?”
इससे पहले कि हनुमान जी उर्वा को कोई उत्तर देते , बाबा मातंग खड़े हुए , हनुमान जी के सामने सिर झुकाया (आज्ञा लेने हेतु) , फिर उर्वा की ओर मुड़कर बोले - “हे होतर, जो इस कड़ी को अच्छे से जानते हैं वे बहुत कम हैं , और जो इस कड़ी को सही से बता सकते हैं वे केवल चिरंजीवी हनुमान हैं | हम वरिष्ट मातंग जिन्होंने 41 साल पहले यह कड़ी प्रभु से सुनी थे , इस कड़ी को बताने के योग्य नहीं हैं | इसलिए इस कड़ी को हमेशा ‘चरणपूजा बही’ के निषेधित हिस्से में रखा जाता है |”
हनुमान जी ने बाबा मातंग के कथन को संशोधित किया - “बाबा मातंग , मैं उस कड़ी का भाग था इसलिए मै इस कड़ी का सही विवरण करने में समर्थ हूँ , लेकिन यह सत्य नहीं है कि ऐसा केवल मै कर सकता हूँ | ऐसी कई महान आत्माएं हैं जिन्होंने काल पर विजय पाई है -- उदाहरण के तौर पर महर्षि व्यास | उनकी आत्मा अब भी इस मानव लोक में है और वे जब चाहे देह धारण कर सकते हैं | वे भूतकाल में जाकर रामायण , महाभारत ; तथा अन्य कालों की घटनाओं को ऐसे देख सकते हैं मानो वे अब भी घटित हो रही हों | वे इतिहास के किसी भी काल का सही विवरण दे सकते हैं |
बाबा मातंग अपना कथन हनुमान जी के शब्दों के प्रकाश में संशोधित करते हुए बोले - “मैं क्षमा चाहता हूँ , प्रभु | मैं कहना चाहता था कि केवल वे महान आत्माएं जिन्होंने काल पर विजय पाई है , पाताल कड़ी का सही विवरण कर सकते हैं | अन्य आत्माओं के लिए इसका विवरण करना निषेध है |”
हनुमान जी अब बाबा मातंग से सहमत दिखाई दिए | बाबा और उर्वा अपने अपने स्थान पर बैठ गए और हनुमान जी पाताल कड़ी सुनाने लगे | उन्होंने बताया - “असुर , जो इस संसार में बुराई के लिए जिम्मेदार हैं , वे स्वभाव से एक बिखरी हुई सेना की तरह हैं : इस बिखरी अवस्था में वे एक दुसरे को ख़त्म कर सकते हैं जिससे कि संसार पर उनका कुल बुरा असर शून्य हो सकता है | लेकिन कोई है जो इनको संगठित करके संसार में बुराई फ़ैलाने में इनका नेतृत्व करता है | उसका नाम है शुक्राचार्य | वह इन असुरो का कप्तान है | वह संसार में व्यवस्थित रूप से बुराई फ़ैलाने के लिए असुरो का प्रयोग करता है | इसलिए वह भगवान् विष्णु का शत्रु है | शुक्र के द्वारा असुरो के हाथों करवाई गई इस व्यवस्थित बुराई को ख़त्म करने के लिए भगवान् विष्णु अवतार लेते हैं |
“जब भगवान् विष्णु ने श्री राम के रूप में अवतार लिया तब शुक्र ने रावण को श्री राम के विरुद्ध प्रयुक्त किया | रावण बहुत बुद्धिमान और तेजबुद्धि था | शुक्र ने असुरो के द्वारा रावण की देह - मन- विवेक - संस्कार सबको अपने वश में कर लिया | उसके बाद उसने असुरो की सारी ताकत को रावण के साथ लगाकर रावण को भगवान् श्री राम जी के विरुद्ध खड़ा कर दिया |
“जब भगवान् विष्णु कृष्ण के रूप में आये तब शुक्र ने महाबली भीष्म तथा अन्य योद्धाओ को श्री कृष्ण के विरुद्ध लाकर खड़ा कर दिया | भीष्म बहुत ही शक्तिशाली थे और उनके अनुसार वे धर्म के अनुसार जीते थे | उनको तनिक भी भान नहीं था कि उनके विवेक पर असुरों ने कुछ इस तरह कब्ज़ा कर लिया था कि उनके अपने सत्यता के सिद्धांत शुक्र के षड़यंत्र के लिए प्रयुक्त किये जा रहे थे | द्रोण जैसे योद्धाओं के साथ भी ऐसा ही हुआ | शुक्र ने असुरो की सारी शक्ति इन योद्धाओं के साथ लगा दी थी |
“रावण , भीष्म आदि का जो हश्र हुआ उसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार थे क्योंकि उन्होंने अपने तन-मन-विवेक पर असुरों का कब्ज़ा होने दिया |
“शुक्र की अब तक की सबसे गूढ़ योजना अभी भगवान् विष्णु के आने वाले अवतार कल्कि को अपने जाल में फंसाने के लिए बुनी गई है | भगवान् विष्णु के लिए सबसे बड़ी चुनौती है एक ऐसी औरत को खोजना जो असुरो के प्रभाव से पूर्णतः मुक्त हो; एक औरत जो भगवान् कल्कि को 9 महीने अपने पेट में रख सके बिना असुरों से प्रभावित हुए | कलियुग के इस चरम पर एक भी ऐसा मनुष्य नहीं है जो असुरों के प्रभाव से मुक्त हो | इसलिए भगवान् कल्कि का जन्म लेना ही महाभारत युद्ध से भी बड़ी कवायद होने वाली है |
“रावण शुक्र की दृष्टि में तब आया जब उसने अपनी अद्भुत समझने की शक्ति और बोधिक क्षमता का परिचय दिया | जब रावण लंका का राजा बना तो उसने आस पास के राज्यों को जीतकर अपना राज्य शक्तिशाली बनाने की सोची | जिस दिन रावण अपनी सेना के साथ एक राज्य जीतने के लिए कूच करने वाला था , उससे पिछली शाम को शुक्र उससे मिला और पुछा , “दशानन , तुम्हारे आकलन से तुम कितने दिन में इस राज्य को जीत लोगे? - राजा अर्क के राज्य को ?”
रावण ने विनम्रता से उत्तर दिया - “आचार्य , राजा अर्क ने बहुत शक्तिशाली किला बना रखा है वो भी बहुत घने जंगल में | जंगल के सभी पशु पक्षी राजा अर्क के वफादार हैं | अतः मुझे अर्क की सेना से ही नहीं अपितु जंगल के खतरनाक पशुओं और जंगल के अन्य खतरों से भी लड़ना पड़ेगा | मुझे चुनौती का भान है | मै यह डींग तो नहीं हांकना चाहूँगा कि मै कितने दिन में वह राज्य जीत लूँगा , लेकिन इतना जरूर कहना चाहूँगा कि मै वह राज्य संसार के किसी अन्य योद्धा से तेज ही जीतूँगा |”
“मेरा उद्देश्य तुम्हारे हौसले को तोडना नहीं है दशानन | लेकिन एकबारगी सोचो : इस संसार में हज़ारों राज्य हैं | सीधे युद्ध से तुम अपने जीवन में ऐसे कितने राज्यों को जीत सकते हो ? हर युद्ध के बाद सेना को जान - माल का नुक्सान होता है जिससे उबरने में महीनों बीत जाते हैं |” ये शब्द बोलते हुए शुक्र की आँखें रावण के चेहरे पर आ रही pप्रतिक्रिया को पढ़ रही थी | थोडा रूककर शुक्र बोले - “हे दशानन , कौशल्य में तुम्हारा तन 100 मानवों के तन के बराबर है | ज्ञान में तुम्हारा मस्तिष्क 10 मनुष्यों के मस्तिष्कों के बराबर है | तुम्हारे तन -मन की इन असाधारण योग्यताओं के बावजूद तुम अंततः एक मनुष्य हो | इस पूरे संसार की तुलना में तुम मात्र एक छोटा सा कण हो | अगर पूरे संसार को जीतना है तो तुम्हे अपने मानव तन - मन की सीमाओं से आगे जाना होगा |”
“रावण ने अपने विचारों को सुनियोजित करने में एक पल लिया और बोला - “आचार्य , शक्ति में मैं केवल एक मानव नहीं हूँ | मेरी सेना के हज़ारों सैनिक मेरे लिए मरने के लिए तैयार हैं | उनके तन-मन भी मेरे तन-मन ही हैं|”
“शुक्र बोले - “कल्पना करो कि तुम्हारी मनुष्य की नहीं बल्कि सर्प की देह होती | तुम राजा अर्क के पास बिना किसी रुकावट के पहुँच जाते ; सेना की सहायता के बिना|”
“लेकिन ऐसी कल्पना करने का क्या प्रयोजन जो संभव ही नहीं है | मैं सर्प की देह कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ? मैं मनुष्य हूँ |” रावण शुक्र के शब्दों पर गहराई से विचार करते हुए बोला |
“शुक्र बोला - “तुम मनुष्य नहीं हो दशानन | तुम एक आत्मा हो जिसने मनुष्य की देह धारण कर रखी है | अगर तुम चाहो तो इस देह को छोड़कर दूसरी देह पहन सकते हो | तुम राजा अर्क को मारने के लिए कुछ समय के लिए सर्प बन सकते हो | फिर तुम वापिस मनुष्य की देह में आ सकते हो |”
रावण बोला - “आचार्य मुझे पता है कि मै एक आत्मा हूँ | जिस तरह देह काल-स्थान के निर्देशांकों में विचरण करती है , आत्मा कर्म-इच्छा के निर्देशांकों में विचरण करती है | मेरी इच्छा और कर्म के निर्देशांक कुछ इस तरह हैं कि इस समय मैंने मनुष्य की देह धारण कर रखी है | मेरी सर्प की देह कैसे हो सकती है?”
“तुम्हारे कहने का अर्थ है कि ... इस जीवन में तुम्हारी सदा मानव देह ही रही है ... तुम्हारे जन्म से लेकर अब तक ... तुमने कोई दूसरी देह धारण नहीं की है ... इस जीवन में ?” शुक्र ने पुछा | अररर ... नहीं .... हाँ .... मेरा मतलब है हैं , मेरी आत्मा ने इस जीवन में हमेशा मानव देह ही धारण रखी है |” रावण ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया |
“शुक्र ने पैनी दृष्टि से रावण को देखा और बोले - “तुम्हारा ऐसा कहना ये कहने के सामान है कि तुम्हारी देह हमेशा जमीन पर रही है | मत भूलो कि जब हम जमीन पर चलते हैं तब भी हमारा एक पैर हवा में रहता है |उसी तरह यह भी संभव है कि तुम्हारी आत्मा इस जीवन में मानव देह के अलावा अन्य देह भी धारण करती हो |”
“रावण ने उत्तर दिया - “आचार्य , जहाँ तक मेरी स्मृति है , मैंने हमेशा मानव देह ही धारण किये रखी है |” “क्या तुम अपनी स्मृति पर अपनी आत्मा से अधिक विश्वास करते हो ?”
“रावण के पास इसका कोई उत्तर नहीं था | कुछ क्षण के विराम के पश्चात् शुक्र ने वर्णन किया - “हे दशानन , स्मृति केवल तुम्हारे तन-मन का एक गुण है | इस समय तुम्हारी देह कौन सी है यह तुम्हारे कर्म और इच्छा के निर्देशांको पर निर्भर है | इसलिए तुम्हारी इस समय जो स्मृति है वह भी तुम्हारे इस समय के कर्म और इच्छा के निर्देशांको पर निर्भर है | जब तुम नींद में जाते हो तब तुम्हारी आत्मा स्वपन लोक में जाकर विभिन्न प्रकार की देह धारण करती है | तुम्हारी आत्मा स्वपन लोक की सभी स्मृतियाँ इस देह में नहीं ला सकती | तुम्हारी आत्मा केवल वो स्मृतियाँ यहाँ लाती है जिसकी अनुमति तुम्हारे कर्म और इच्छा के निर्देशांक देते हैं |”
रावण आत्मा के ज्ञान का मर्म तुरंत समझ गया | शुक्र के चरणों में घुटनों के बल बैठकर बोला - “आचार्य , मै अपनी स्मृति से अधिक अपनी आत्मा पर भरोसा करता हूँ और अपनी आत्मा से भी ज्यादा भरोसा मैं आपकी दी हुई शिक्षा पर करता हूँ | कृपा मुझे शिक्षा दीजिये कि देह कैसे बदली जा सकती है |”
“शुक्र ने पूछा - “तुम्हारी अर्क के राज्य में कैसे जाने की योजना है? क्या तुम्हे रास्ता मालुम है?”
“रावण ने उत्तर दिया - “हाँ आचार्य , मेरे सेनापतियों ने सर्वेक्षण किया है और अर्क के राज्य में पहुँचने का सबसे उत्तम रास्ता पता किया है |”
“जिस तरह अर्क तक पहुँचने के लिए तुम अपने सेनापतियों पर निर्भर हो , वैसे ही तुम्हे अपनी देह बदलने के लिए असुरों पर निर्भर होना पड़ेगा | असुरों को पता है कि किस देह को धारण करने के लिए कौन से कर्म-इच्छा निर्देशांक आवश्यक हैं | चिंता मत करो | मैं असुरों का गुरु हूँ | वे वही करेंगे जो मैं उनसे करवाना चाहता हूँ |” शुक्र ने वर्णन किया |
“आचार्य, मैं स्वयं को आपको समर्पित करता हूँ | कृपा आदेश दें कि मुझे राजा अर्क का राज्य जीतने के लिए क्या करना चाहिए | अर्क का एक मंत्री अर्क के विरूद्ध है | वह अन्दर से हमारी सेना की सहायता करेगा | अर्क को मारने के बाद मैं उस मंत्री को वहां का शासक बना दूंगा | वह मेरे अधीन रहकर वहां का शासन करेगा|”
“तुम्हारी सेना अर्क के राज्य में नहीं जायेगी , दशानन| तुम अकेले वहां जाओगे वह भी सर्प के रूप में और रात में ही अर्क की हत्या कर दोगे| अर्क के उस विद्रोही मंत्री को सन्देश भेज दो कि अर्क जैसे चूहे को मारने के लिए तुम्हे सेना की जरूरत नहीं है | वह चूहा आज रात ही मारा जायेगा | उसे कहो कि वह राज्य का नियंत्रण अपने हाथ में लेने के लिए तैयार रहे |”
“रावण ने अर्क के राज्य पर सेना के हमले का विचार त्याग दिया | उसने अर्क के विद्रोही मंत्री को बाज के माध्यम से तुरंत सन्देश भेजा जैसा कि शुक्र ने कहा था |
“उस रात रावण आत्मा, देह तथा असुरों आदि के बारे में गहराई से विचार करते हुए नींद में चला गया | उसे उस रात विचित्र स्वपन दिखाई दिए | उसे दिखाई दिया कि राजा अर्क देवताओं से विशेष शक्तियां प्राप्त करने के लिए यज्ञ कर रहा था | अर्क ने सफलतापूर्वक यज्ञ पूर्ण किया और क्षेत्र का सबसे शक्तिशाली राजा बन गया | रावण ने अर्क का शासन स्वीकार कर लिया और उसके अधीन शासन करने लगा | इस भयानक स्वपन से उसकी नींद खुल गई | भय से उसके पसीने छूट रहे थे | उसने पानी पीया और वापिस नींद में चला गया | स्वपन फिर से शुरू हो गया और उसने अपने आपको अर्क के राज्य में रेंगते हुए देखा | उसने देखा कि उसने अर्क के महल में किसी की गर्दन पर आक्रमण करके उसकी हत्या कर दी है|”
“यह विचित्र स्वप्न पूरे रात चलता रहा| सुबह जब वह उठा तो उसने अपनी खिड़की पर अपने बाज को पाया जो अर्क के मंत्री का संदेश लाया था | सन्देश था - “... हे राजाओं के राजा ! हे मेरे प्रभु ! आप मृत्यु के देवता से भी शक्तिशाली हैं | आपने अर्क को सच में चूहे की मृत्यु दी | कोबरा नाग ने कल रात उसे मार दिया | मैं अपनी आँखों से आपकी जादुई शक्तियां देखकर स्वयं को भाग्यशाली समझता हूँ | आप राजाओं के राजा हैं | मैं आपका शासन स्वीकार करता हूँ | मैंने अर्क के राज्य को अपने नियंत्रण में ले लिया है | मैं आपके शासन के नीचे अर्क राज्य पर शासन करूँगा ... अगर आप आज्ञा दें तो ...”
“रावण को बाद में पता चला कि उस रात अर्क के राज्य में क्या घटनाएँ घटित हुई | एक कोबरा नाग का जोड़ा अर्क के राज्य में रहता था | वे नागो के राजा थे और राजा अर्क के प्रति उनकी निष्ठा थी | देर रात मादा कोबरा को जाग आई और उसने नर कोबरा से कहा - “मैंने सुना है कि राजा अर्क देवताओं से विशेष शक्तियां प्राप्त करने के लिए यज्ञ करने की तैयारी कर रहे हैं | उस यज्ञ में वह हमारे राज्य के सभी नागों की बलि देने वाला है |”
“नर कोबरा को इस सूचना पर विश्वास नहीं हुआ | उसने राजा के महल में पूछताछ की तो पता चला कि अर्क सच में ही एक यज्ञ की तैयारी कर रहा था जो अगली सुबह शुरू होने वाला था | इस धोखे पर नर कोबरा बहुत क्रोधित हो गया | वह राजा के महल में चुपके से घुस गया और अर्क की हत्या कर दी |
“उस सुबह रावण सबसे पहले शुक्राचार्य से मिलने पहुंचा यह जानने के लिए कि यह चमत्कार कैसे हुआ | शुक्राचार्य ने बताया - “हे दशानन, कल रात तुम्हारी आत्मा उस समय मादा कोबरा की देह में घुस गयी जब वह सोई हुई थी और उसकी आत्मा उसकी देह में नहीं थी | तुमने उसकी देह का प्रयोग करके नर कोबरा को गलत सुचना दे दी | दरअसल अर्क की यज्ञ में नागों का बलिदान देने की कोई योजना नहीं थी|”
“... लेकिन आचार्य , मैं मादा कोबरा की देह में कब गया ? मुझे तो कुछ याद नहीं हैं ... मुझे तो सिर्फ इतना याद है कि मुझे कल रात कुछ विचित्र स्वपन दिखाई दिए |” रावण ख़ुशी में चिल्लाते हुए से बोला | अगले ही पल उसे अपने शब्दों में तर्क का अभाव होने का अहसास हुआ | उसने अपने शब्दों में संशोधन किया - “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे क्या याद है | क्योंकि मेरी स्मृति इस पर निर्भर करती है कि इस समय मेरी आत्मा के कर्म और इच्छा के निर्देशांक क्या हैं | हाँ ... मैं अपनी स्मृति पर विश्वास नहीं कर सकता| मैं केवल आपके शब्दों पर विश्वास कर सकता हूँ | मैंने अपने जीवन में सबसे चमत्कारी अनुभव यह प्राप्त किया है| आचार्य ... आपने बिना सेना के एक राजा की हत्या कर दी|”
“मेरे पास असुरों की सेना है, दशानन|” शुक्र ने रावण को बताया - “यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि मेरे असुर अकेले अर्क की हत्या नहीं कर सकते थे | तुम्हारी इच्छा और कर्म ही मुख्य हथियार हैं जिनका उपयोग करके मेरे असुरो ने यह कार्य किया | तुम्हारी आत्मा की शक्ति मेरे असुरों की शक्ति के साथ मिलकर इससे भी बड़े कारनामे कर सकते हैं |”
“हे मातांगो मैंने यह घटना इसलिए सुनाई क्योंकि यह पाताल कड़ी को समझने के लिए बहुत आवश्यक है | रावण की असुरों के मार्ग पर यात्रा इसी घटना से शुरू हुई थी | धीरे धीरे असुरों ने रावण को पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लिया |” हनुमान जी ने अति उत्सुक मातंगो की सभा को बताया | इससे पहले कि मातंगों में से कोई भी कोई प्रश्न पूछता , हनुमान जी ने आगे बोलना शुरू किया - “रावण ने बहुत जल्दी आस पास के राज्य इसी तरह जीते और अपना शासन दूर दूर तक फैला लिया |”
“एक दिन शुक्र ने रावण को एक ज्वालामुखी के पास वार्तालाप हेतु बुलाया| रावण ने हाथ जोड़कर वार्तालाप शुरू किया -“आचार्य , मुझे आपका यहाँ वार्तालाप करने का प्रयोजन समझ में नहीं आया | यहाँ बहुत गर्मी है | हालांकि ज्वालामुखी यहाँ से बहुत दूर है , ज्वालामुखी का दृश्य ही किसी भी इंसान को जिन्दा जलाने वाला प्रतीत होता है|”
“तुम अपने महल में अपनी विजयों पर कुछ ज्यादा ही आनंद मना रहे थे | तो मैंने सोचा कि तुम्हे वास्तविकता का आभास कराना चाहिए|” शुक्र ने क्रोध में कहा |
“रावण शुक्र के चरणों में घुटने टिकाते हुए हाथ जोड़कर बोला - “आचार्य, कृपा मुझपर इस तरह क्रोधित न हों | आपके शब्द ज्वालामुखी से अधिक भयानक प्रतीत होते हैं |”
“शुक्र ने थोडा नम्र होकर कहा - “हे दशानन, अगर तुम्हे गर्मी का एक झोंका मृत्यु के घाट उतार सकता है तो फिर राज्य जीतने का क्या लाभ? सारी विजय निरर्थक है जब तक कि तुम मृत्यु पर विजय न प्राप्त कर लो |”
“आचार्य, मैं एक आत्मा हूँ जो कभी नहीं मर सकती | मैं देह नहीं हूँ |” रावण ने शुक्र को प्रभावित करने के लिए ज्ञान भरे शब्द कहने की कोशिश की |
“लेकिन शुक्र प्रभावित नहीं हुए| वे बोले - “लोग तुम्हे इस देह से ही तो जानते हैं , दशानन| अगर यह देह मृत हो गई तो तुम बिलकुल ऐसी ही देह कहाँ से लाओगे?”
रावण बोला -“मानव शरीर की कुछ सीमायें हैं आचार्य| कृपा मुझे बताएं कि इन सीमाओं को कैसे पार किया जा सकता है?”
“शुक्र ने तुरंत उत्तर दिया -“जाओ और जाकर उस ज्वालामुखी में कूद जाओ|”
“रावण ने एकबारगी तो ऐसा सोचा कि शुक्र उस पर अब भी क्रोधित हैं लेकिन फिर उसने शुक्र के कहे शब्दों में से ज्ञान निचोड़ने के काम पर अपने मस्तिष्क को लगा दिया | कुछ देर सोचने के बाद वह बोला -“आचार्य , मैं कम से कम इस मानव शरीर के साथ तो ज्वालामुखी के करीब भी नहीं जा सकता | क्या इस संसार में ऐसा कोई जीव है जो ज्वालामुखी की गर्मी को सह सके ? मैं उस जीव की देह का उपयोग करके निश्चय ही ज्वालामुखी में कूद सकता हूँ |लेकिन जहाँ तक मेरा ज्ञान है , इस संसार में ऐसा कोई जीव नहीं है |”
“कौन सा ज्ञान तुम्हे यह बताता है कि ऐसा कोई जीव इस संसार में नहीं है - वो ज्ञान जो तुम्हारे मानव मस्तिस्क में संग्रहीत है , या वो ज्ञान जो तुम्हे मानव मस्तिष्क की सीमाओं के पार ले जाता है?” शुक्र ने पुछा|
“मेरा मतलब था ... कि मैंने कभी ऐसे जीव को न ही देखा है न किसी से सुना है जो ज्वालामुखी की गर्मी सहन कर सकता हो |” रावण ने तुरंत उत्तर दिया जिससे कि उसे शुक्र के शब्दो पर गहरे से विचार करने का कुछ समय मिल गया| शुक्र ने रावण के शीघ्रता से कहे शब्दों का उत्तर नहीं दिया तो रावण ने विचारों की गहराई में जाकर उत्तर दिया - “मैं सहमत हूँ आचार्य| मैं ऐसे ज्ञान पर विश्वास नहीं कर सकता जो मेरे मानव मस्तिष्क में संग्रहीत है क्योंकि वह ज्ञान मेरे मानव शरीर की पांच इन्द्रियों पर आधारित है | ऐसे भी जीव हो सकते हैं जो मेरी मानव इन्द्रियां अनुभव न कर सकें और जिनके बारे में मेरा मानव मस्तिष्क सोच भी न सके|”
“बहुत अच्छा!” शुक्र ने टिपण्णी की और बोले - “ज्वालामुखी से जो गर्म द्रव निकल रहा है यह धरती के गर्भ से निकल रहा है जहाँ न तो प्रकाश है न हवा और तापमान भी अत्यधिक है| क्या तुम्हारा मस्तिष्क इतना बड़ा है कि यह समझ सके कि वहां उस अवस्था में भी कुछ जीव रह रहे हैं ? जिस तरह हम मानव हवा के परितंत्र में रहते हैं ; मछलियाँ जल के परितंत्र में रहती हैं , पाताल के जीव इस गर्म द्रव के परितंत्र में रहते हैं जो तुम ज्वालामुखी से निकलता देख रहे हो | वह पूर्णतः अलग संसार है | तुम उस संसार को अपने इस मानव तन-मन से अनुभव नहीं कर सकते | उस संसार को अनुभव करने के लिए तुम्हे उस संसार की देह ही धारण करनी पड़ेगी | जब तुम पाताल को पाताल की देह के माध्यम से अनुभव करोगे तो वह हमारे संसार की तरह ही सामान्य संसार दिखाई पड़ेगा |”
“रावण को शुक्र की बात तुरंत समझ आ गई | उसने इस पर एक बुद्धिमान प्रश्न पूछा| वो बोला - “आचार्य , अगर हम , इस मानव लोक के जीव पाताल के जीवों के साथ किसी भी तरह की पारस्परिक क्रिया नहीं कर सकते तो पाताल को जीतने का क्या लाभ ? उनकी वस्तुएं हमारे किसी भी काम की नहीं हैं क्योंकि हमारे लिए तो वे वस्तुए एक अत्यधिक गर्म द्रव मात्र हैं | तो उस संसार के बारे में सोचने से भी क्या लाभ?”
“शुक्र ने उत्तर दिया - “क्योंकि अगर तुम यह सीख लेते हो कि पाताल में कैसे जाया जाए और कैसे वापिस आया जाए तो तुम काल पर विजय प्राप्त कर लोगे | तो तुम भूतकाल और भविष्य काल में यात्रा कर सकोगे | तुम अपना भूत और भविष्य बदल भी सकोगे |”
“रावण तुरंत कुछ नहीं पूछ सका| वह गहरे विचारों में चला गया | उसके विचारों को सहारा देने के लिए शुक्र बोले , “यहाँ कुंजी यह है कि पाताल अस्तित्व के बिलकुल अलग फलक पर है | हमारा समय तंत्र पाताल के जीवों पर लागू नहीं होता | पाताल के जीव समय के बिलकुल अलग पट्टे पर “दौड़” रहे हैं |”
“शुक्र जो रहस्य समझाने का प्रयास कर रहे थे उसे समझने के लिए रावण को इतना संकेत प्रयाप्त था | वह बोला - “मैं समझ गया आचार्य | भगवान् शिव की कृपा से मैंने काल को अपनी आँखों से देखा है | मैंने समय के वे अदृश्य धागे देखे हैं जिन पर हम टिके हुए हैं | वे एक ऐसे पट्टे की भांति हैं जो केवल आगे की ओर चलता है | जिसके कारण हम समय में पीछे की ओर यात्रा नहीं कर सकते | हम चाहे जो भी कर रहे हों , हम भविष्य की ओर अग्रसर होते रहते हैं क्योंकि हम समय के उस पट्टे के साथ चिपके हुए हैं | पाताल का काल पट्टा हमारे काल पट्टे के समानांतर चलने वाला पट्टा है | हम हमारे पट्टे से पाताल के पट्टे पर कूद सकते हैं और फिर वापिस हमारे पट्टे पर आते समय हमारे पास विकल्प होता है कि हम भूतकाल में वापिस आयें या भविष्य काल में | यह अद्भुत है ... लेकिन आचार्य , पाताल में कैसे जाया जाए?”
“शुक्र ने उत्तर दिया - “दशानन, मेरी असुरों की सेना तुम्हारे इच्छा-कर्म के निर्देशांक इस तरह बदलने में सक्षम है जिससे कि तुम्हारी आत्मा की पहुँच पाताल के जीवों की देह तक हो जायेगी ... वह भी बहुत शीघ्र ... अगर तुम अपनी तुच्छ विजयों पर तुच्छ आनंद मनाना बंद कर दो तो !”
“प्रिये मातंगो , उस दिन से रावण की आत्मा के पाताल के साथ प्रयोग शुरू हो गए | उस समय पाताल में दो भाई रहते थे - अहि और महि | रावण की आत्मा की पहुँच महि की देह तक हो गई जिसके जरिये वह पाताल के अद्भुत संसार का आनंद लेने लगा | अहि और महि भाइयों के बीच अद्भुत प्रेम था | रावण मही की देह में घुसकर अहि को बुरे कार्य करने के लिए उकसाने लगा|
[टिपण्णी : अहि और महि रावण के भाई नहीं थे | अहि और महि परस्पर भाई थे और रावण महि की देह में प्रवेश किया करता था | अगर आपको यह समझ में नहीं आया है तो कृपा अध्याय शुरू से फिर से पढ़े |]
“अपने पाताल के प्रयोगों से रावण ने मानवलोक में भूत और भविष्य में विचरण करना सीख लिया | लेकिन उसने केवल वही सीखा जो शुक्र उसे सीखाना चाहते थे | रावण के कर्म अब उसकी इच्छा शक्ति का आधार खो चुके थे | उसकी आत्मा को शुक्र ने अपने असुरों के माध्यम से जकड रखा था और शुक्र उसका प्रयोग भगवान् विष्णु के विपरीत बुने जा रहे अपने षडयंत्र में कर रहे थे |
“रावण द्वारा हासिल की गई परलोक शक्तियां और भगवान् राम का उन शक्तियों को नष्ट करना , भगवान् राम की लीलाओं का शानदार भाग है | वे लीलाएं केवल ज्ञानियों द्वारा बखान की जा सकती हैं, वे भी केवल योग्य लोगों के सामने |
“शुक्र ने रावण को भरोसा दिला रखा था कि जब तक रावण अपनी देह को सुरक्षित रखेगा तब तक अन्य सभी को पुनर्जीवित किया जा सकता है | इसलिए युद्धभूमि में रावण ने खुद कदम न रखकर अपने भाइयों तथा बेटों को भेजा | लेकिन शुक्र का षड्यंत्र भगवान् राम को काल के एक असीमित फंदे , जिसे महामाया कहा जाता है , में जकड़ने का था | जब लंका के सभी प्रमुख योद्धा मृत्यु को प्राप्त हो गए , तब शुक्र ने अपने महाषडयंत्र को कार्यान्वित किया | इस महा षडयंत्र की पहली कड़ी थी भगवान् राम को पाताल में ले जाना |
“हे मातंगो , पाताल में जाने के कई रास्ते हैं | साधारणतया एक आत्मा जिस रास्ते से जाती है उस रास्ते को “याद” कर लेती है और उसी रास्ते से वापिस भी आ जाती है | शुक्र का षडयंत्र भगवान् राम को एक ऐसे एकतरफा रास्ते से पाताल ले जाने का था जिससे कि उनके पास वापिस आने का एक ही रास्ता बचे जो उनको भूतकाल में ले जाए | कल्पना कीजिये , भगवान् राम उस रात लंका के सभी प्रमुख योद्धाओं को मारकर सोते हैं और अगली सुबह भूतकाल में उठकर देखते हैं कि कोई नहीं मरा है | वे पुनः युद्ध करते हैं , पुनः लंका के प्रमुख योद्धाओं को मारते हैं , पुनः सोते हैं और अगली सुबह उठकर देखते हैं कि अभी कोई नहीं मरा है | और ऐसा अनंत काल तक चलता रहता है | इसे कहते हैं काल का वह असीमित फंदा जिसका नाम महामाया है |
“शुक्र के षडयंत्र का केवल एक ही तोड़ था वो यह कि जब भगवान् राम को एकतरफा मार्ग से ले जाया जाए तो हमारे लोक की कोई अन्य आत्मा साधारण रास्ते से जाए और उन्हें अपने साथ सुरक्षित ‘वर्तमान’ में वापिस ले आये | शुक्र जानता था कि हमारी तरफ कोई भी ऐसा नहीं था जिसे पाताल का रास्ता मालुम हो | और युद्ध के नियमों के अनुसार कोई देवता भगवान् राम की सहायता करने नहीं आ सकते थे | अपने षड़यंत्र को और भी पक्का करने के लिए शुक्र ने मुझे और लक्ष्मण को भी भगवान् राम के साथ अपहृत करके पाताल में ले जाने का निर्णय लिया , क्योंकि उसे शक था कि भगवान् राम के करीब होने के कारण शायद हमने उनसे पाताल जाना सीख लिया हो |
“जिस एकतरफा रास्ते से शुक्र हमें अपहृत करना चाह रहा था वह रास्ता स्वपनलोक से होकर जाता है | उसके षडयंत्र की सफलता के लिए हम तीनो - भगवान् राम , लक्ष्मण और मै - को उस रात निद्रा में होना था |
“उसका षड्यंत्र पहले चरण में थोडा सा पटरी पर उतर गया | कारण बने उसके अपने असुर | असुरों ने रावण को कई मायनों में शक्तिशाली बनाया था तो कई मायनों में कमजोर भी कर दिया था | उसके अपने भाई विभीषण ने उसका साथ ऍन समय पर छोड़ दिया था क्योंकि असुरों ने रावण के स्वभाव को अहंकारी और अशिष्ट कर दिया था | इतना ही नहीं , उसके कई वफादार लोग उसके विरुद्ध हो गए थे और वे अन्दर ही अन्दर उसके विरुद्ध कार्य कर रहे थे | वे विभीषण को गुप्त सूचनाएँ पहुंचा रहे थे जो हमारी तरफ हो गया था | उस रात भी विभीषण को गुप्त सूचना मिली कि रावण भगवान् राम के अपहरण की योजना बना रहा है | उस सूचना में पाताल का उल्लेख नहीं था | विभीषण ने मुझको चौकन्ना कर दिया जिसके कारण मै जागता रहा और उस तम्बू के बाहर पहरा देता रहा जहाँ भगवान् राम और लक्ष्मण सो रहे थे |
“शुक्र का मुझे अपहृत करने का षडयंत्र असफल हो गया क्योंकि मैं सोया ही नहीं , लेकिन वह भगवान् राम और लक्ष्मण का अपहरण करने में कामयाब हो गया | यह शुक्र का कोई अचानक बनाया हुआ षड्यंत्र नहीं था | भगवान् राम ने बाद में मुझे बताया कि शुक्र उस रात के लिए लम्बे समय से घटनाओं को अंजाम दे रहा था ताकि वह भगवान् राम को उस स्थिति में ले जाए जिसे “सपने के अन्दर सपना” कहते हैं | नींद में जाने से पहले विभीषण उनको तम्बू में मिलने आया था | मानवलोक में निंद्रा को प्राप्त होने के बाद वे स्वपनलोक पहुंचे जहाँ उन्हें विभीषण फिर से तम्बू में दिखाई दिए | स्वपनलोक में भी वे निद्रा में चले गए | इसे कहते हैं “सपने के अन्दर सपना” स्थिति | स्वपनलोक में निद्रा में चले जाने के बाद वे “पाताल के स्वपनलोक” पहुंचे जहाँ पर उन्हें फिर से विभीषण दिखाई दिए | लेकिन वास्तव में वे विभीषण नहीं अपितु विभीषण के रूप में “अहि” था जो उनको वहां से पाताल ले गया |
“देर रात विभीषण को सूचना मिली कि रावण “भगवान् राम के अपहरण” की ख़ुशी में आनंद के अतिरेक में झूम रहा है | विभीषण इस सूचना के साथ मेरे पास दौड़े दौड़े आये | मैंने कहा - “ऐसा कैसे संभव है? मैं यहाँ द्वार पर पूरी तरह चौकन्ना हूँ | मैं यहाँ से एक पल के लिए भी नहीं हिला हूँ |”
“हमने तम्बू के अन्दर जाकर देखा तो भगवान् राम और लक्षमण आराम से सो रहे थे | किसी अनहोनी का कोई चिन्ह भी मौजूद नहीं था | “देखा, मैंने कहा था न ! आपकी सूचना गलत है |” मैंने राहत की सांस ली |
“लेकिन विभीषण को सूचना की सत्यता पर पूर्ण विश्वास था | उसके सूत्र भरोसे लायक थे | उसने भगवान् राम को जगाने की कोशिश की | वह नहीं जगा सका | जब कोई आत्मा स्वपनलोक में जाती है तो उसे तुरंत देह में बुलाया जा सकता है , देह की इन्द्रियों को आह्वान देकर | लेकिन भगवान् राम और लक्षमण की (परम) आत्माएं पाताल में ले जाई जा चुकी थी और हमारी तरफ कोई ऐसा नहीं था जिसे पाताल से आत्मा को वापिस लाना आता हो |
*****“जब तक मैं अपने प्रभु भगवान् राम से नहीं मिला था , मुझे तो कुछ भी नही आता था | उनकी कृपा से ही मुझे एक एक करके अपनी शक्तियों का बोध हुआ था | जब भगवन राम और लक्षमण का अपहरण हुआ तब मुझे पाताल के बारे में कुछ भी मालुम नहीं था | फिर मैंने सोचा - “कोई सर्वशक्तिशाली भगवान् का अपहरण कैसे कर सकता है? यह निश्चित ही भगवान् राम की कोई लीला होगी जिसका उद्देश्य मेरी !!!

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