जय श्री राम जय श्री राम

श्रीराधा कृष्ण जी वैदिक ही हैं



,☀ (श्रीराधा कृष्ण जी वैदिक ही हैं) ☀
श्रीराम ! आएदिन कुछ असाजिक तत्व बुद्धिमानी का ढक्कन लगाकर विभिन्न प्रकार के सनातन वैदिकहिन्दुधर्म के तत्वों पर कुत्सित आक्षेप करते रहते हैं। उन्हीं में से एक है--"#राधाजी_पौराणिकों_की_कल्पनाहैं""अतः दुर्जनमुख मर्दनाय सज्जन प्रीणनाय #वैदिक_प्रमाण प्रस्तुत हैं----
राधे! विशाखे! सहवानु राधा (अथवर्वेद--१९-७-३)

हे राधे!हे विशाखे! श्रीराधा हमारे लिए सुखदायिनी हों।

इंद्रं वयमनूराधं हवामहे-(अथर्व.१९-१५-०२)

हम सब भक्तजन श्रीराधाजी के सहित इंद्र(श्रीकृष्ण) की आराधना करते हैं।

इत्यादि वेद वचन श्रीराधाकृष्ण जी की आराधना का निर्देश दे रहे हैं। अन्य पुराणक शास्त्र तो इनकी महिमा दिव्य जन्म कर्म विशेषताओं के लिए तो अधिकृत ही हैं।।

अब इनके नामो के निर्वचन द्वारा देखते हैं----
#राधा :--राधयती साधयति उत्पादन रूपेण सृष्टिकार्याणि सा राधा --जो उत्पादन द्वारा सृष्टि के सभी कार्य सम्पन्न करती हैं वे राधा हैं।वे ही प्रकृति की अधिष्ठात्री होने से प्रकृति रूपा हैं।
#कृष्ण-- कृषिर्भूवाचकः शब्दो णश्च निर्वृत्तिवाचकः।
तयोरैक्यं परब्रह्म कृष्ण इत्यभिधीयते।।
कृष् शब्द #सत्ता का वाचक है। #ण शब्द #आनन्द का वाचक है।इन दोनों की एकता सत् आनन्द रूप #परब्रह्म अर्थ #कृष्ण शब्द का है। ये ही ब्रह्म और शक्ति रूपा प्रकृति के रूपमें सर्वत्र प्रतिपादित हैं।।
श्रीभगवान् की नित्यसंश्लिष्टा श्री जी ही गोलोक में #राधा रूपमें विराजती हैं। वस्तुतः भक्तों को आनंद प्रदान हेतु तथा आपके सन्मुख करने हेतु एक अविनाशी परमात्मा ही स्वयं अपने को ही सीताराम, लक्ष्मी नारायण, राधाकृष्ण, गौरीशंकर, आदि स्वरूपों में विराजते हैं।
श्रीभगवान् श्रीराधा अर्थात् प्रसवात्मिका प्रकृति की अधीश्वरी का आश्रय करके सृष्टि क्रिया रूप रति क्रीड़ा , उसमें वे स्वरूप भूत सुख से मुक्त हैं।आर्थात् सांसारिक पदार्थ जन्य जो सुख है वह भी परमात्मा का ही है। भ्रम के कारण ही लोग विषय जन्य मानते हैं।
यहां #रति का अर्थ--क्रीड़ा रूप सृष्टि है।"स वै न रेमे" इस बृहदारण्यक श्रुति द्वारा सृष्टिप्रक्रिया को ही ब्रह्मकी क्रीड़ा कहा गया है।
राधा (प्रकृति की अधीश्वरी होने से)प्रकृति का जो #मोहन -
जीवों को मोहमें डालने वाला गुण है उससे वे #परे हैं।अर्थात् प्राकृत पदार्थों से कभी मोहित नहीं होते।
राधा से अधिष्ठित जो प्रकृति के महदादि कार्य हैं, वे ही कमल हैं।आदि कारण #सलिल से उत्पन्न होने के कारण कमल रूप कहे जाते हैं। इसी लिए भगवान् भ्रमर के समान रहस्य रूप रास के रसज्ञ हैं। रास वस्तुतः सृष्टि प्रक्रिया ही है। अतः भगवान् उसी में रमण करते हैं।
राधलिंगन सम्मोहो राधालिंगन तत्परः।
राधाजातसम्प्रीती राधा काम फलप्रदः।।
भगवान् राधा प्रकृति के आलिंगन या संयोग से सांसारिक प्राणियों को मोहने वाले हैं। राधा (प्रकृति )का नर्तन (जगत् के रूपमें परिणत होना )है उसके कौतुकी हैं।अर्थात् समस्त जगत् की रचना उनका कौतुक ही है।
राधा प्रकृति द्वारा उत्पन्न प्राणियोंको आनंदित करने वाले हैं।
राधा( कार्यरूप प्रकृति) द्वारा इच्छानुरूप अभीष्ट फल देने वाले हैं। श्रीराम!

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